थारु राष्ट्रिय दैनिक
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सिकलसेल एनिमिया न्यूनीकरण कैना भोज आघे जाँच अनिवार्य

पहुरा | १७ माघ २०८०, बुधबार
सिकलसेल एनिमिया न्यूनीकरण कैना भोज आघे जाँच अनिवार्य

सरिता थारू
काठमाडौँ, १७ माघ ।
कैलालीके हसुलियाके माया चौधरी अपनहे सिकलसेल रोग हुइल पत्ता लागल ९ वर्ष ढेर हुइल । उमेरसे ४० पुगल मायाहे सुरुमे कमजोरी हुइना मुरी बठैना, रगतके कमी हुइना समस्या विल्गाइल । पाछे उहाँक यी समस्या जटिल बन्टी गैल ।

‘कमजोरीसे सटैना, मुरी बठैना, रगतके कमी हुए,’ उहाँ कहली, ‘पाछे पित्तथैलीमे पत्थरी विल्गाइल । ओकर अपरेसनके लाग जाँच कराईबेर सिकलसेल देखा परल ।’
सिकलसेल एनिमियाके जाँच उ समयमे जिल्लास्तरमे नइहुए । ओकर लाग उहाँ काठमाडौँ आइपरल रहे । रोग पहिचान हुसेकलपाटे उहाँ नियमित रुपमे जाँच ओ औषधि सेवन करटी आइल बटी ।
उहाँक दुई सन्तान बटै । उहाँक गोसिया ओ उहाँक दुई सन्तानहे सिकलसेल नइरहल बटैली । हाल अपने नियमित रूपमे सरकारसे प्राप्त हुइना सिकलसेलके निःशुल्क औषधी सेवन करटी रहल बटी । रोग पहिचान आघे भर उहाँ उपचारके लाग भारतसम पुगे परल रहे ।

माया जस्टे कैलालीके भजनी नगरपालिका–३ के सरिता कुमारी चौधरीफे नौ वर्ष अमघे केल सिकलसेल एनिमिया हुइल पत्ता लागल रहे । उहाँहे गोर बठैना, मुरी भारी हुइना, थकान महसुस हुइना लक्षण विल्गाइल रहे । ‘ठोरेचे नेंग्लेसेफे ढेर बोल्लेसेफे थकान महसुस हुए,’ उहाँ कहली, ‘हात गोर बठैना, मुरी भारी हुइटी गैल, पाछ पाछे बेहोस हुई लग्लै ।’

बाँकेस्थित कोहलपुर मेडिकल शिक्षण अस्पतालमे जाँच कराइलपाछे उहाँहे रगतके कमी विल्गााइल । रगत के कारण कमी हुइल कहिके जाँच करेबेर उहाँहे सिकलसेल रहल पुष्टि हुइल । सरकारी निकाय अन्तरगतके अस्पतालसे उ रोग प्रमाणित करलेसे १ लाखसमके औषधि उपचार पैना पत्ता हुइल । सिकलसेल प्रमाणित हुईना आघे उहाँ भारतके टमान अस्पताल समेतमे औषधि उपचार करे पुगल सुनैली । हालसम उहाँ पाँच लाख रुप्या औषधि उपचारमे खर्च हुइल सुनैली । जाँचपश्चत भर सरकारसे निःशुल्क औषधि उपचार हुइटी रहल बटैली । ‘तीन–तीन महिनामे नियमित जाँच ओ रगत चढाई परठ,’ उहाँ कहली ।
उहाँ केल नइहुके उहाँक ७ वर्षीया छाईफे सिकलसेल हुइल पाइल बा । ‘छाईक जाँच कराईबेर रिपोटमे सिकलसेल डेखल बा । औषधिके लाग अब कुछ दिनमे जैबी,’ उहाँ कहली ।

माया ओ सरिता प्रतिनिधि पात्र केल हुइट । सिकलसेल एनिमियाके बिरामी देशभर करिब ५ हजारके सख्यामे रहल भेरी अस्पतालके प्रमुख कन्सल्टेन्ट फिजिसियन तथा मेडिसिन विभागके प्रमुख डा. राजन पाण्डे बटैलै । ‘विशेष करके दाङ, बाँके, बर्दिया, कैलाली, कञ्चनपुरके थारु समुदायमे यी रोग देखा परल बा,’ उहाँ कहलै, ‘यी बिरामीमध्ये ९९.९९ थारु बटै । एक जाने अधिकारी थरके, एक जाने बुढाथोकी थरके, एक जाने बिक थरके ओ रैदाश थर रहल एक–दुई जाने सिकलसेलके बिरामी बटै ।’

सन् २०१७ मे नेपाल हेल्थ रिसर्च काउन्सिलसे समुदायमे आधारित सिकलसेल एनिमिया स्क्रीनिङ करल डा. पाण्डे बटैलै । ओम्ने बर्दियाके बारबर्दिया नगरपालिकामे १०.८ प्रतिशतमे सिकलसेल बाहक नुकल पाइल बा ।

सिकलसेल एनिमिया पहिचान करल मध्ये करिब १ प्रतिशत सख््यामे डेखलहे आधार मानेबेर देशभर राष्ट्रिय जनगणना २०७८ अनुसार नेपालमे १८ लाख ७१ हजार २४ थारु समुदायके सख्या बा । उ अनुसार थारु समुदायके १८ हजार जनहनमे सिकलसेल एनिमिया रोग हुई सेक्ना अनुमान लगाई सेक्ना डा. पाण्डे बटैलै ।

का हो सिकलसेल एनेमिया ?

मनैनके रगतमे पैना लाल गोलाकार रक्त कोषिकाके स्वरुप परिवर्तन हुके हँसियाजस्टे आकारमे रूपान्तरण हुइना रक्तअल्पता सम्बन्धी रोगहे सिकलसेल रोग वा सिकलसेल एनिमिया कहिके बुझजाइठ ।
सिकलसेल रोग वंशाणुगत हो । यी रोग खास करके थारु समुदायके मनैनमे डेखल डा. पाण्डे बटैलै । यी रोग जिनमे हुइना खराबीसे डाई बाबासे लर्कनमे सर्ना करठ । यी रोग लागल बिरामीहुकनके रक्तकोष हँसिया आकारके हुइना ओरसे यिहीहे हँसिया रोगफे कहठै ।

लक्षण

सिकलसेल रोग वा सिकलसेल एनिमिया रहल व्यक्तिके शरीर बठैना, बार–बार जन्डिस हुइना, रगत कम हुइना, सङ्क्रमणके सम्भावना ढेर हुइना जैसिन मुख्य लक्षण रहल डा. पाण्डे बटैलै । यी संगे अन्य रोग लग्लेसे टमान खाले लक्षण विल्गैना करल उहाँ सुनैलै ।

उपचार

सिकलसेल एनिमिया वंशाणुगत रोग रहल ओरसे उपचारसे न्यूनीकरण करे सेक्ना पाण्डे बटैले । यी रोग निर्मूल पारेक लाग भोज कैना आघे रोग नइरहल व्यक्तिसँग भोज कैना उत्तम उपाय रहल उहाँ बटैलै । जेकर लाग थारु समुदायके युवायुवती अपनहे यी रोग रहल बा वा नइहो अनिवार्य जाँच कराई पर्ना बटैलै ।

के कुहीसे भोज कैना ?

थारु समुदायमे विल्गैना सिकलसेल रोग रोकथामके लाग रगत जाँच करके भोज कुण्डली मिलैना ृउहाँ सुझाव डेले बटै ।
डा पाण्डेसे तयार पारल भोजहा कुण्डलीमे ‘के कैसिनसे भोज’ कैना विषयहे प्राथमिकता डेहल बा । उहाँ तयार पारल भोजहा कुण्डलीमे सिकलसेलके बिरामी–बिरामीबिच भोज करे नइमिल्ना उल्लेख करल बा । पचास प्रतिशत बिरामी ओ ५० प्रतिशत बाहकसेफे भोज करे नइमिल्ना कहल बा ।

पच्चीस प्रतिशत सामान्य, २५ प्रतिशत बिरामी ओ ५० प्रतिशत बाहकके बिचमे भोज करलेसेफे सोचविचार करे पर्ना उल्लेख बा ।
बाहक–बाहक, ५० प्रतिशत सामान्य ओ ५० प्रतिशत बाहकके बिचमे भोज करे मिल्न उल्लेख करल बा । अब्बे रोग नइडेख्लेसेफे उहीसे जन्मल बच्चामे रोग सरे सेक्नाहे ‘बाहक’ कहल बा । अब्बेक पुस्तामे रोग डेखल नइहो । ओकर सन्तानमे रोग विल्गाई सेक्नाहे बाहक कहिजाइठ ।

सामान्यता भोज करेबेर चिना हेर्ना करजाइठ, मने थारु समुदायमे भर रगत जाँच करे पर्ना अवस्था आइल बा । सन्तानहे सिकलसेलसे बचाइक लाग रगत जाँच करके केल कुण्डली मिलाई पर्ना हुइल बा ।
डा.पाण्डे सिकलसेलके रोकथाम कहल पूर्वतयारी हुइल ओरसे रगत जाँच करके कुण्डली मिलाके भोज करेबेर नियन्त्रण करे सेक्ना उल्लेख करलै ।

थारु समुदायमे यैसिक पत्ता लागल रहे सिकलसेल एनिमिया

डा. पाण्डेके अनुसार सन् २००३ ममे २ ठो सिकलसेल एनिमियाके केस रिपोर्ट हुइल रहे । उ दुई ठो केस फे नवलपरासी जिल्लाके थारु समुदायके रहे । काठमाडौँके टिचिङ अस्पतालमे परीक्षण हुइल रहे ।

सन् २०११ से २०१२ सम सिकलसेल एनिमियाके कुछ रोगी फेला परलेसेफे यी रोगके अवस्था नेपालमे कैसिन बा कहिके अध्ययन नइहुइल उहाँ बटैलै ।

२०६८ सालपाछे बाँकेके भेरी अस्पतालामे कार्यरत रहेबेर डा. पाण्डे दैनिक रुपमे थारु समुदायके युवायुवती हात बठैना, डेह बठैना, जन्डिस हुइना समस्या लेके अइना भेटेलै । उ लक्षण सिकलसेलसंग मेल खैना उहाँ डेख्लै । बिरामीके हिस्ट्री हेरेबेर ढेर ठाउँमे उपचार करल भेटैलै । कोई ५ लाख कोई १० लाख कोई जग्गा बेचल रहिट । यैसिन केस ६ से ८ महिनामे ३९ ठो रहल उहाँ सुनैलै ।

उ ३९ जाने सक्कु थारु सामुदायके रहिट । ओकरपाछे उ विषयमे अपने अध्ययन सुरु करल डा. पाण्डे बटैलै । उ समयमे बिरामी केक्रे गोसिया गोसिनीयके डिभोर्स हुइल, कोई बाध्यात्मक रूपसे धर्म परिवर्तन करल फे पागिल, उहाँ कहलै, ‘कुछ घर निकाल हुइल भेटलै, विद्यार्थीसे पह्रे छोरल केसफे भेटलैेँ, यी रोगसे फे सामाजिक पाटोहे महीहे छुवल । ओकरपाछे मै अध्ययन सुरु करनु ।’

२०६८ सालओर यी रोग पहिचान कैना देशभर प्रविधि नइरहल सुनैटी कहलै, ‘उ बेला यी प्रविधि टिचिङ अस्पतालमे केल रहे । पाछे थारु समुदायमे डेखल आोरसे यी रोग जनस्वास्थ्यके समस्या रहल ओ सिकलसेल हुइलहे उ रोग निःशुल्क कैना अभियान सुरु हुइल ।’
हाल देशके टमान स्थानीय तहमे यी रोग जाँच कैना प्रविधि उपलब्ध हुसेकल बटै । बिरामीसे १ लाख उपचार खर्चफे सरकारसे पैटी रहल बटै ।

अब का कैना ?

सिकलसेल न्यूनीकरणके लाग स्थानीयसे केन्द्र सरकारसे गम्भीरतापूर्वक लेहे पर्ना डा. पाण्डे सुझैले बटै । उहाँक अनुसार बिरामीहे स्वास्थ्य बीमामे समावेश करे पर्ना डेखल बा । ‘बीमामे राखल बिरामीसे एक वर्षमे एक लाख रुप्याक औषधि करे पैठै,’ उहाँ कहलै्, ‘बीमामे आबद्ध करेबेर बिरामीके प्रिमियम सरकार तिर्ना व्यवस्था मिलाई परठ ।’
यी रोगके उपचार बोनम्यारो ट्रन्सपालन्टसेफे करे सेक्जाइठ । यकर लाग १५ लाख ढेर खर्च हुइना हुइल ओरसे हालसम यी उपचार करल नइमिलठ । ‘दुसर बाट न्यूनीकरणमे जैना आवश्यक बा, ओकर लाग सक्कु युवायुवतीके जाँच करे परठ,’ उहाँ कहलै, ‘विशेष करके भोजसे पहिले जाँच कैना, सचेत करैना हो ।’

ओस्टेक, गर्भावस्थामे बच्चाके जाँच कैना प्रविधि नेपालमे नन्ना आवश्यक बा । यकर सहायतासे गर्भावस्थामे बच्चामे सिकलसेल बा वा नइहो पत्ता लगाई सेक्ना उहाँ बटैलै । ‘हरेक जन्मल बच्चाके सिकलसेल जाँच कराई परठ वा नौ महिनामे दादुराके खोप लगाईबेर उ रोगके जाँच कैना, उहाँ कहलै, ‘यैसिक करेबेर रोगीके पहिचान हुइठ, उहे अनुसार न्यूनीकरणके उपाय अपनाई सेक्जाइठ ।’
डा. पाण्डे चिकित्सकहे सिकलसेल एनिमियाके थप तालिमके आवश्यकता रहल बटैलै । यिहीसे सचेतना फैलैना मद्दत पुग्न उल्लेख करलै । साभारः रातोपाटीसे

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