भाषा आयोगप्रति आदिवासी जनजाति महासंघके आपत्ति

पहुरा समाचारदाता
धनगढी, ३१ भदौ । नेपाल आदिवासी जनजाति महासंघसे भाषा आयोगसे २१ भदौ २०७८ मे प्रधानमन्त्रीसमक्ष सातु प्रदेशमे सरकारी कामकाजके भाषाके आधारके निर्धारण तथा भाषा सम्बन्धी सिफारिशप्रति आपत्ति जनैले बा ।
महासंघके अध्यक्ष जगत बरामसे विज्ञप्ति जारी कैके सम्बन्धित आधिकारिक भाषिक संघसंस्थासे परामर्श ओ छलफल नैकैके सातु प्रदेशमे सरकारी कामकाजके भाषाके आधारके निर्धारण तथा भाषा सम्बन्धी सिफारिश करलमे आपत्ति जनाइल हो ।
‘‘ आयोगसे ऐतिहासिक महत्वपूर्ण प्रतिवेदनके तयारीके क्रममे नेपालसे अनुमोदन करल आदिवासीको अधिकारसम्बन्धी आइएलओ महासन्धि नं. १६९ ओ पक्ष राष्ट्र रहल आदिवासीके अधिकारसम्बन्धी संयुक्त राष्ट्रसंघीय घोषणापत्र–२००७ के मर्म, भावना ओ सिद्धान्तके अवमूल्यन कैटी लोकतन्त्रके आधारभूत मूल्य–मान्यता ओ अभ्यास एवम् स्वतन्त्र, पूर्वजानकारीसहितके मञ्जरीके सिद्धान्तके विपरित हम्रे सम्बन्धित आधिकारिक भाषिक संघसंस्थासँग परामर्श ओ छलफल नैकरलमे घोर भर्त्सना करटी ।’ विज्ञप्तिमे कहल बा ।
महासंघसे प्रदेशमे १ प्रतिशतसे ढिउर वक्ता रहल भाषाके सूचीके आधार, स्थानीय तहके सरकार पालिकामे भाषाके प्रयोगके आधार का हो कहिके मातृभाषी समुदायहे प्रष्ट पार्न भाषा आयोगसमक्ष माग करले बा । विज्ञप्तिमे कहल बा, ‘ एकओर, प्रदेशमे १ प्रतिशतसे ढिउर वक्ता रहल भाषाके सूचीके आधार का हो ? स्थानीय तहके सरकार पालिकामे भाषाके प्रयोगके आधार का हो ? कौन सिद्धान्तसे सहयोग करठ् ? सम्बन्धित थातथलोमे रहल कम जनसंख्यासे बोलुइया भाषाहे स्थानीय तहके सरकारी कामकाजके रूपमे प्रयोग करे सेकजैना बलगर आधार का हो ?’
ओस्टके भाषा आयोगसे बुझाइल प्रतिवेदन सरकार तथा सम्बन्धित नियकायसमक्ष सार्वजनिक कैना महासंघसे माग करले बा । विज्ञप्तिमे कहल बा, ‘ एक प्रतिशतसे ढिउर जनसंख्यासे बोल्ना भाषा, कम जनसंख्यासे बोल्न भाषा ओ लोपोन्मुख भाषाके सम्बन्धमे कुछ न कुछ बोलल् ओ सिफारिश फेन करल डेखगैलेसे फेन सरकारहे प्रतिवेदन बुझाइल अत्रा दिन बित्लेसे फेन सार्वजनिक नैकैनासे विगतके हसक जालसाजी षड्यन्त्र हुइटी रहल टे नैहो कना प्रश्न उब्जाइल बा । तसर्थ, सरकार तथा सम्बन्धित निकायसे पूर्ण प्रतिवेदन अविलम्ब सार्वजनिक कैना इहे वक्तव्यमार्फत जोड्दार माग करटी ।’

