थारु राष्ट्रिय दैनिक
भाषा, संस्कृति ओ समाचारमूलक पत्रिका
[ थारु सम्बत १४ बैशाख २६४९, अत्वार ]
[ वि.सं १४ बैशाख २०८२, आईतवार ]
[ 27 Apr 2025, Sunday ]

साहित्य

लाल मोरै

लाल मोरै

लाल मोरै कसिन रहठ ? कट्रा भारी रहठ ? उज्जर मोरै असक लम्मा रहठ कि सलगम असक गुल्यार ? लाल मोरैक पट्या कसिन रहठुइहिस ? हरेर रहठुइहिस कि लाल जो रहठुइहिस ? बीरबहादुर क ठे लाल मोरैक बारेम छन्डि छन्डिक हजारौ सबाल बाटिन । बाबा लाल मोरै लेह गैलक
विस्वासघात

विस्वासघात

ढेर पैसा कमाके अपन घर परिवार हे खुसी से जिन्दगी बिटैम कहिके रमेश मलेसिया गैल रहठ् । बिदेशमे नेंट के मजा सुबिढा हुइलेक ओर्से रमेश रात दिन नेंट मे झुलल रहठ । बठिनियन् संघरिया बनैना चौबिसो घन्टा गफ कर्ना रमेशके बानी दिन दिने बडल्टी
दुई मुक्तक

दुई मुक्तक

सुनगाभा काहे, भौंरा हे मारठ ।मैया करुयनके, जिन्गी बिगारठ ।।अप्नेहे लोभ्वाइठ, जग्मग्रार बनके,आपनसँग अप्नेहे, खुद काजे हारठ ।। मुटुक बिच्चे आँधी चलठ, काहे टु मै अचम्मके ।बिना आगिक् दिल जरठ, काहे टु मै अचम्मके ।।ना टे सेक्नु कहे कब्बु,
जोखुक् जिन्गी

जोखुक् जिन्गी

कौनो प्राणी इ धरतीम पौली टेक्लक बाद यमराजके यात्रामे सरिक हुइना निश्चित रहठ । मने बाट अट्रे हो कि कोइ कर्रक कोइ ढिरेक । इ सक्कु बाट जन्टी जन्टी, बुझ्टी बुझ्टी एक्काइसौं शताब्दीमे विश्वबह्माण्डके इ चेतनशील उपनाउँके पात्र ऐस, आराम,
चिपा रो छोट्का

चिपा रो छोट्का

भुख लागल मै भात मंग्नु,टुँ म्वार पिठिम धाप लगाकबरा प्यारसे कलोचिपा रो छोट्का ।म्वार ठे काम कर्ना पख्रा बा,मै जमिन मंग्नु टुहिन दया लागलअढ्या लगाइक लाग ठन्चे डेलोमालिक टुँ खुद रहो, मै कमैयाओ बरा प्यारसे कलोचिपा रो छोट्का ।मै बेराम
डाडु का बा विडेसमे ?

डाडु का बा विडेसमे ?

डाडु,टु यहाँसे गैलेपरडाइ जहिया फेनचिन्टा लेटि रठिटोहार उ हटारमेलेलक निर्नयलेफुरे हम्रहिनअक्को मजा लागल नै होहमेर टुहिन रोक्नालाख कोसिक कैलिमने खै टुँ का करेविडेस पलायन हुइनासोंच बनैलोडाडु, का टुँ उहाँचैनसे बैठे पैले बटो ?बिल्कुल
गजलः दरबार तातल बा

गजलः दरबार तातल बा

आजकाल सिंह बैस्ना दरबार तातल बालालची पार्टी पङ्क्तिके घरबार तालल बा । लगाम बिनाके कार्यकर्तनके बाहवाहीमनाक निरहल नेताके सरदार तातल बा । चारुओर असन्तुष्ति ओ विरोधकेल देख्जाइठसंवैधानिक असंवैधानिक द्वन्द्वले अखबार तातल बा । बेमौसमी
रुपन्देहीम थारु लोकसाहित्यके अवस्था

रुपन्देहीम थारु लोकसाहित्यके अवस्था

परिचय थारु लोकसाहित्य कलक थारु जाति जुगजुगसे एक पुस्तासे डोसर पुस्तामे मौखिक रूपम लोकगीत, लोकगाथा, लोककथा, लोककहकुट, लोकटुक्का, लोकबुझौलिया आदिक माध्यमसे लोकव्यवहार हस्तान्तरण कर्टी आ रख्लक लौकिक साहित्य वा परम्पराहे बुझाइठ् ।
हो, हम्रे कमुइयाँ भासा बोल्ठि

हो, हम्रे कमुइयाँ भासा बोल्ठि

हम्रे कमुइयाँ हुइहो, हम्रे कमुइयैं हुइकाम कैना मनैयाँ, कमुइयाँउहेमारे हम्रे कमुइयाँ हुइ ।हम्रे कमुइयाँ उट्ठिकमुइयाँ बैट्ठि, कमुइयाँ खैठिओ कमुइयाँ सुट्ठिका करे कि, कमुइयाँ हमार कला होकमुइयाँ हमार रिटभाँट, रहन–सहन होओ कमुइयाँ
मुअल बाटि कि जिट्टि बाटि ?

मुअल बाटि कि जिट्टि बाटि ?

उ हमार बस्टिम छिरलहमार भासा, संस्कृटि,ढरमके उँप्पर लाट ट्याकलहमार उट्पटिक मिठक फ्यारलअस्टिम्किक, डस्यक मिठक फ्यारलघोरिघोराहन घोडाघोडी बनाइ असमाघहन माघि बनाडिहलहमार मुँ एक अछ्छर नि ब्वाललकहो हम्र मुअल बाटि कि जिट्टि बाटि ? लर्का