थारु राष्ट्रिय दैनिक
भाषा, संस्कृति ओ समाचारमूलक पत्रिका
[ थारु सम्बत १५ बैशाख २६४८, शनिच्चर ]
[ वि.सं १५ बैशाख २०८१, शनिबार ]
[ 27 Apr 2024, Saturday ]

साहित्य

मोर डाइ

मोर डाइ

आपन खुन पस्नासे महिन सिंच्लो डाइनौ नौ महिना आपन कोखमे पल्लो डाइआपन अङ्ग अङ्ग टुर्केरकटके आँस रोकेभिष्म पिटाके जसिन कुरुक्षेत्रमेटिरके बिस्टरामे सुटलबट्ठा महसुस कर्टियि प्राकृतिक डुनियाँ डेखैलो डाइआपन खुन पस्नासे महिन सिंच्लो
का पठ चुकि खाइटो ?

का पठ चुकि खाइटो ?

मै टुहिन और बाट नि पुछमपुछम ट एक्कठो बाटटुँ काजे अबिर लगाइटो ?का पठ चुकि खाइटो ??आस किल्वाहि छिन्लि कैखटुहिन पटा बाकाल जाक टउ किल्वाहि टटुहाँर खुसि उप्पर लागिप्रतिगमन हटलअग्रगमन जिटल कठोखै ट टीकापुर जिटल ?खै ट थारु हुँक्र जिट्ल ?ट
अबहट्टाके बाट

अबहट्टाके बाट

शब्द–शब्दसे लिख रहलची थारु साहित्यके नाम रेचौअनी अठअन्नी नै माँगैची हम कोनो दाम रे ।।नजर गैहरयाके देख आँईखके पलक उघाईरके देखमाईटमे एक–एक अवाज तोहर अबहट्टाके बाट देख ।। बटोहियाके बाट लिहारैत अबहट्टाके निसान रेथारुके देश देखलक
नाटक करोटक साक्षिपात्र

नाटक करोटक साक्षिपात्र

डुइ बरस आग माघ ठे डुइठो जार खाइल नाटक “करोट” । निमाङ थारु ओ खस नेपाली भाषम मञ्चन हुइल नाटक करोट २०७५ साल पुस ६ गतेसे २१ गतेसम् सर्वनाम थिएटर, काठमाडौँ ओ माघ १६ गतेसे २२ गतेसम् घोराही ओ तुलसीपुरम प्रदर्शन हुइल । काठमाडौँ केन्द्रित
बाध्यताके सिकार

बाध्यताके सिकार

पात्र हुक्र : डिलसिंह : जिम्डर्वा बिस्न्या : कमैया( डिलसिंहके पुरान कमैया ) चुल्ही : बिस्नेक जन्नी भुन्टी : विस्नेक छाई रामु : बिस्नेक छावा स्थान : बिस्नेक गाउँ ओ चौभानके आसपास दृश्य –१ (बिस्नेक अङ्गनाम बैठ्ख मोछ पक्ला जिम्डरवा डिलसिंह
भस्कुरान भ्वाज

भस्कुरान भ्वाज

फग्नक महिना रुख्वा बरिख्वाम लौव लौझा डँर्या पट्टेम लट्पटाइल बौंरा सुगुना ढुल्ला खेल्टि फुलवारसे मगमग सुवास लेक सिट्टर बयाल घर घर अइलक सन्डेसमुलक गिटले गाउँ चैनार पर्टि रह । माघ–डेवानिम स्वाचल सोचह आघ बह्रैना समय सेम्रक भुवाअस
मुक्तक

मुक्तक

कुछ लिखु कैके कलम उठैठु कलम रूक जाइट् ।मनके पोक्री डिलसे खोलु कठु मनमे नुक जाइट् ।। बहुट बा, इच्छा चाहना यी जिन्गीम् कुछ करना मनमै सपना डेख्टी रहि जिठु बहुट कुछ झुक जाइट् ।। टीकापुर, कैलाली
लाल मोरै

लाल मोरै

लाल मोरै कसिन रहठ ? कट्रा भारी रहठ ? उज्जर मोरै असक लम्मा रहठ कि सलगम असक गुल्यार ? लाल मोरैक पट्या कसिन रहठुइहिस ? हरेर रहठुइहिस कि लाल जो रहठुइहिस ? बीरबहादुर क ठे लाल मोरैक बारेम छन्डि छन्डिक हजारौ सबाल बाटिन । बाबा लाल मोरै लेह गैलक
विस्वासघात

विस्वासघात

ढेर पैसा कमाके अपन घर परिवार हे खुसी से जिन्दगी बिटैम कहिके रमेश मलेसिया गैल रहठ् । बिदेशमे नेंट के मजा सुबिढा हुइलेक ओर्से रमेश रात दिन नेंट मे झुलल रहठ । बठिनियन् संघरिया बनैना चौबिसो घन्टा गफ कर्ना रमेशके बानी दिन दिने बडल्टी
दुई मुक्तक

दुई मुक्तक

सुनगाभा काहे, भौंरा हे मारठ ।मैया करुयनके, जिन्गी बिगारठ ।।अप्नेहे लोभ्वाइठ, जग्मग्रार बनके,आपनसँग अप्नेहे, खुद काजे हारठ ।। मुटुक बिच्चे आँधी चलठ, काहे टु मै अचम्मके ।बिना आगिक् दिल जरठ, काहे टु मै अचम्मके ।।ना टे सेक्नु कहे कब्बु,