थारु राष्ट्रिय दैनिक
भाषा, संस्कृति ओ समाचारमूलक पत्रिका
[ थारु सम्बत १३ बैशाख २६४९, शनिच्चर ]
[ वि.सं १३ बैशाख २०८२, शनिबार ]
[ 26 Apr 2025, Saturday ]

साहित्य

चली गोचा संगे परगा बर्हाइ

चली गोचा संगे परगा बर्हाइ

गोचा टुँ ओ मैमुस्कान के बियाँ छिट्केरात दिन पस्ना चुहाकेहिमालसे गोचाली भिंरकेपहारसे मित जोरकेतराईके फँटुवामेचली गोचा संगे परगा बर्हाइजल स्रोतके खानी हिमालमे बाखनिज पदार्थके स्रोत पहारमे बाऔद्योगिक स्रोत तराईके मैदानमे बाअत्रा
थारु लेखक संघसे एक स्रष्टाहे सम्मान कैना

थारु लेखक संघसे एक स्रष्टाहे सम्मान कैना

पहुरा समाचारदाताधनगढी, १६ माघ । थारू लेखक संघ नेपाल धनगढी कैलाली ‘थारू साहित्य पुरस्कार २०७८’ से मौलिक तथा सांस्कृतिक गीत संगीत विधामे एकजाने स्रष्टाहे सम्मान कैना हुइल बा । धनगढीमे बैठल कार्यसमितिके बैठकसे अइना फागुन ११ ओ १२ गते
मन्के लागल ‘मनके आवाज’

मन्के लागल ‘मनके आवाज’

विगत ढेर बरससे कंचनपुरके साहित्यिक स्रस्टा लोगनके खोजीमे डौरटि रहल यी पंक्तिकारके आब बलटल साँस अइलिस । कंचनपुर जिल्लाके थारु भासामे गजल लिख्के कृति प्रकासन करुइया अशोक चौधरी पहिल स्रस्टा हुइँट् । एम्ने कौनो दुइ मत नैहो । आझ खुसी
मोर छातीक् घाउ

मोर छातीक् घाउ

ना टे निन परठना टे भुख लागठना टे मनमे चयन होना टे खैले खा जाइठना टे आछट पाटीसे निक हुइठना टे डाक्टारके दवाइ लागठ ।आँस पोंछटीदिन बिटलअँठवार बिटलमहिना बिटलपुरा साल बिटलटब्बो परनैआइल मनमे उमंगनैछाइल तनमे रंगछावक् अस्रे अस्रामे ।कसिक
मघौटा गीत

मघौटा गीत

घोराही शहरम लागल बजाररे हाँ ।घोराही शहरम…,लागल बजाररे हाँ ।घोराही शहरके सेन्डुरा लान्डेबु रे धनि ।घोराही शहरके सेन्डुरा लान्डेबु रे धनि ।। तुल्सीपुर शहरम लागल बजाररे हाँ ।तुल्सीपुर शहरम…,लागल बजाररे हाँ ।तुल्सीपुर शहरके झोबन्ना

दुई मुक्तक

१. भरल माघेम घर फोरम सोचल आटो की का।।एक्के परिवारमे तीन चार डल आटो की का।। बसल घर उखर्ना सहजे बा उखरल बसैना कर्रा ।डाडा भैयान बिलल्वाके छोरल आटो की का।। २. असौं माघेम मेला घुमे लैजैम प्यारी।।जत्रा पेटेम अटाई सब खवैम प्यारी।। यी सपना
हड्बड

हड्बड

ए हो, साँझ के भेंटे अइहो ना । जसिक फेन आइ परि हेरो । – कहाँ हो ? कोन ठाउँ मे ? मै पुछ्नु । – ओहै टे काहुँ घरक पाछे पलाँगी टिर । यहाँ महिन कसिन कसिन लागठ बरा । उ कलिन । – अरे का हुइठ बटाउ ना । टप टे जानम । […]
डाइ बाबा

डाइ बाबा

डाइ बाबा जरम देल सुन्दर धर्तीम,अर्ती उपदेश डेटि कठ लागो पुत प्रगतिम । मेहनत कैक काम करी, नै हुईना हो बेलाहा,छिपलपाकल पुर्खाहुकन नै कर्ना हो हेलाहा । मनै जरम पाक हम्र सभ्य बन सिखी,अग्रजनके सैदानहन साहित्यम लिखी । डाइ बाबा डिउँडा हुईट
छाेक्रा गीत

छाेक्रा गीत

पुरुव परल बाँके जिल्ला हाँ पच्छिउँम कैलाली ।बिचमन बैठल बाटी हम्र बर्दियाली ।। शीरानम रहलबा हाँ पर्वत देउराली ।जीवजन्तु वनजङ्गल ठाँउ हरियाली ।। धेरबाटी आदिवासी हाँ थारु जनजाति ।मुख्य पेसा कृषि हमार कर्थि खेतीपाती ।। बर्दियामा
दुई मुक्तक

दुई मुक्तक

१.मोर मुटु, छाटिम् टोहाँर नाउँ लिखल बा ।घरक् कोरै बाटिम् टोहाँर नाउँ लिखल बा । आझ टुँ चाहे जट्रा डुर जाके रमाउ ‘रच्चु’,खटियक् सिरै पाटिम् टोहाँर नाउँ लिखल बा । २.टोहाँर बिना रहे नैसेकम रच्चु ।छातीक बट्ठा सहे नैसेकम रच्चु । पुर्खनके