थारु राष्ट्रिय दैनिक
भाषा, संस्कृति ओ समाचारमूलक पत्रिका
[ थारु सम्बत ११ बैशाख २६४८, मंगर ]
[ वि.सं ११ बैशाख २०८१, मंगलवार ]
[ 23 Apr 2024, Tuesday ]

अट्वारीमे दिदीसे माला ओ टीका

पहुरा | ३ आश्विन २०७८, आईतवार
अट्वारीमे दिदीसे माला ओ टीका

थारु समुदायके पवित्र पर्व अट्वारीके बेला मै मोर बर्की दिदी शान्ति चौधरीसँग यिबेरके अट्वारीमे डौना ओ लौङ्गारा फूलक माला ओ चाउरके पीठक टीका लगा डेना अनुरोध करले रहेँ । अट्वारीके व्रतमे दिदीबहिनियन लाग निकारल अग्रासन (कोशेली–फलफूल, रोटी, तरकारी ओ भात) सोम्मारके लेके गैनु । मै कहल अनुसार दिदी डौना ओ लौङ्गारा फूलक मगमग वास आइना माला बनाके ढरले रहि । बहुट मायासे माला ओ टीका लगा डेले । मै अत्यन्त हर्षित हुइनु । टब सिकार, मछार, दाल, अचार ओ टमान टिना सहितके खाना डेलि ।

अग्रासन पठाके अइटिकिल मै तुरुन्ते टीका ओ माला घालल एक फोटु सामाजिक सञ्जालमे पोष्ट करनु । भिडियो फेन लाइभ करनु । टमानजे मजा अभ्यासके शुरुवाट कहिके कमेन्ट करलैं कलेसे कुछलोग भर संस्कृति बिगारल ओ पर्व बह्राइल कना प्रतिक्रिया डेलैं । मै एक दिनसम कुछ प्रतिक्रिया नैडेनु । बिफके रोज एक स्ट्याटस् शेयर करनु । उ प्रतिक्रियाके भर सहमति ढेर आइल । कुछ फोन फेन आइल, मै जवाफ डेनुँ ।

कुछ प्रतिक्रिया अइसिन आइल, ‘यी कहाँक चलन हो ? डौनाके माला टे दशैंमे उद्घाटन करलपाछे किल लगाजाइठ ।’ ‘अप्ने नयाँ चलनके शुरुवाट करलि । मने अइसिक दिदीबहिनीसँग टीका लगैना थारु चलनमे नैहो ।’ ‘जोन थारु सँस्कृति ओ परम्परामे नैहो, हम्रे छलफल करेपरठ ओ अइसिन अभ्यास हटाइ परठ । चाखलग्ना बाट टे का बा कलेसे सोमजी कैसिक अभ्यासमे नन्लैं, उहाँ टे हमार समुदायमे थारु संस्कृतिके संरक्षण ओ वकालतके लाग रोल मोडल हो । उहाँ फेसबुकमे पोष्ट करल यी स्ट्याटससे मै चिन्तित हुइल बटुँ ।’ ‘भाइ टीका लगैना चलन बा ओ दाजु ? ढेर टे नैहुँयल, संस्कृति बचैटि किल कि बिगारटि ? मै कन्फ्युज हुँयनु ।’

ओ, कुछ अइसिन प्रतिक्रिया फेन बा, ‘भाइतिहार ओ अट्वारी ओस्टे सम्बन्धमे आधारित हो । मानव सांस्कृतिक उद्वविकासक्रममे फरक परिवेश ओ संघर्ष सामना करटि आइल ओरसे फरक फरक परम्परा विकास हुइलेसे फेन मूलरूपसे उहिनसे दुःखसुख भावना, जीवनानुभूति सायद समान हुइना हो । भाइतिहार ओ अट्वारीके मूल मर्मसे मिल्ना केवल संयोग नैहुके अस्टे समान मानवीय संवेगके द्योतक हो जस्टे लागल ।’ ‘समय सापेक्ष परिवर्तनके नाममे अपन संस्कार ओ परम्पराहे मरे भर नैडेहे परठ, भाइ । टोहान संस्कार जोगैना कार्यके मै एकडम सम्मान करठुँ । यी संस्कार भित्तर खोज करना हो कलेसे टमान वैज्ञानिक कारण फेन बा । जिहिनहे जोगाइ सेकलेसे काल्हके दिनमे पक्के ओकर हुइ । हमार संस्कार ओ संस्कृतिहे विदेशी नाममे ढरकाके फेर सिखेपरना अवस्था नानजाइटा ।’ ‘थारू रहे कि बाहुन, तामाङ रहे कि मुसलमान, लिम्बु रहे कि मगर, क्षेत्रि रहे कि पासवान मनै टे मनै हो । ओकर परम्परा, रीतिरिवाज निरन्तर विकासशील हुइठ । यकर विकासक्रममे, १. परस्पर सांस्कृतिक आदानप्रदान ओ २. परिवेशजन्य आवश्यकताबोध वा साझा अनुभूतिके प्रमुख भूमिका रहठ । राजनीतिसे समुदाय समुदायबीच विभाजन ओ दूरी तथा प्रकृतिसे एकत्व ओ निकटता बह्रलमे काल्हके परम्परा जस्टेक टस्टे आज नैहो । आजके परम्परा काल्ह अस्टे रहन सम्भव नैहो । यी बदलि बदलटिरहि ।’

का हो टे अट्वारी ?

थारु समुदायके एक पवित्र पर्व हो अट्वारी । यी पर्वहे बर्का अट्वारी फेन कहिजाइठ । अट्वार (आइतबार) के दिन मनैना हुइल ओरसे यी पर्वहे अट्वारी या बर्का अट्वारी कहिजाइठ ।
कृष्ण जन्माष्टमीके पाछेक पहिल पूर्णिमाके दिन मनैना यी पर्वमे खास करके बर्किमार (महाभारत) के पात्र भीम ओ आगीक पूजा करजाइठ । प्रायः पुरुषहुक्रे अँट्वारके दिन व्रत बैठ्के साँझके भिवाँ (भीम) के लाग एकओर किल पकाइल रोटी छुत्याके अग्नी पूजा करजाइठ । दिदीबहिनियनके लाग रोटी ओ फलफूल (अग्रासन) छुट्याके फलाहार करजाइठ । यी पर्वमे रोटी पकाइक लाग पवित्र आगी (गन्यारी काठसे निकारल आगी) चाहठ ।

यी पर्वमे खास करके बर्किमार (महाभारत मने कुछ फरक) के पात्र भिवाँ (भीम) के पूजा करजाइठ । शुरुके रोटी उहाँक लाग छुट्याजाइठ जोन एकओर से किल पकाजाइठ । काहे पूजा करजाइठ कना सम्बन्धमे कुछलोग राजा डंगीशरणके पालामे सहयोग मागे आइलमे भिवाँ रोटी पकैटि पकैटि सहयोग करे गिल कथा जोरठैं । मने, कुछ जानकारहुक्रे महाभारत काल ओ डंगीशरणकालके इतिहासके फरक परल ओरसे मिथक बटैठैं । भिवाँ जब फेन कर्तव्य परायण, महिलामैत्री, सोझ ओ बलवान रहैं कना बाट बर्किमारमे उल्लेख रहल विश्लेषण करठैं संस्कृतिके विश्लेषकहुक्रे । ओ उहाँक व्यवहार थारु जातसँग मिल्ना बटैठैं । यद्यपि यी पर्वके ऐतिहासिक पक्षमे अभिन गहन खोज अनुसन्धान हुइना बाँकी बा ।

अट्वारीमे टीका ओ माला काहे ?

विश्वमे दिन प्रतिदिन परिवर्तन हुइटा । डिजिटल प्रविधि ओ बसाई स्थानान्तरणके कारण एक समुदायके मनै औरे समुदायमे घुलमिल हुइटैं । एक औरेबीच विवाहसे लेके सामुहिक क्रियाकलाप ओ चाडपर्व मनाइटैं । एकसे औरेक संस्कृति ओ संस्कार ग्रहण करटैं । अइसिन अवस्थामे जोन सँस्कृति मनैन्हे सहज लागठ या कहि आकर्षक रहठ ओहे संस्कृति सहजिलेसे अपनैना या अभ्यास करना करठैं । यी मानवीय गुण हो । यिहिनहे नकारे फेन नैसेकजाइ । संस्कृति मानवसे अभ्यास करल या कहि बनाइल सामाजिक कार्य हो । कालान्तरमे अभ्यास हुइटि संस्कृति ओ संस्कारके रुपमे स्थापित हुइल । आधुनिकीकरणके कारण या कहि मनैन्मे आइल चेतनासे कुछ संस्कृति अन्तर्गत अभ्यास हुइल क्रियाकलाप लोप फेन हुइल बा कलेसे कुछ नयाँ ढंगसे आघे बह्रल बा ।

थारु समुदाय एक आदिवासी जनजाति समुदाय हो । यी समुदाय संस्कृति अन्तर्गत खानपान, भेषभुषा, चाडपर्व, स्वागत सत्कारमे, नाचगानमे अत्यन्त धनी समुदाय हो । मने, शासकीय स्वरुप ओ डिजिटल प्रविधिके कारण यी समुदायसे मन्ना करल अर्गानिक तथा मौलिक संस्कृति धरापमे परल बा । जस्टे, गुरिया, अट्वारी, अस्टिम्की, हर्ढावा, हरेरी आदि चाडपर्व मनैनाके संख्या घटल अवस्था बा । थारु समुदायमे प्रचलित नाच ओ गीत फेन लोप हुइटिरहल अवस्था बा । थारु समुदायके एकठो पर्व माघहे किल राष्ट्रियकरण करलपाछे यी पर्व साझा पर्वके रुपमे स्थापित हुइ लागल बा ।

चाडपर्व लोप हुइना या मनै मनाइ छोरनाके ढेर कारण हुइ सेकठ । उमध्येमे कुछ मुख्य बाट का हो कलेसे चाडपर्वके ऐतिहासिकता, धार्मिक, साँस्कृतिक ओ सामाजिक महत्वके बारेमे समुदाय जानकार नैरलेसे ढिरेसे छोरटि जैठैं । हम्रे नयाँ पुस्ताहे कौनो फेन चाडपर्वके यि आयामहे बुझाइ नैसेकब कलेसे उहाँहुक्रे मनाइ छोरडिहि । अस्टेक औरे प्रमुख पक्ष हो सरकार तथा शासकीय स्वरुप । सरकारसे कौनो फेन समुदायके चाडपर्वहे संरक्षण ओ संवद्र्धनके नीति लेनासे विलय करना नीति लेहल कलेसे स्वभाविकरुपमे संकटमे परठ । थारु समुदायके पर्वमे सार्वजनिक बिदा नैहुइठ । अट्वारीमे बल्लतल्ल प्रदेश तथा स्थानीय सरकार एक दिनके बिदा डेना करल बा । सरकारी ओ निजी विद्यालय चाडपर्वके दोसर दिनसे परीक्षा शुरु करठैं । टबेमारे उ समुदाय खुलके या घर जाके चाडपर्व मनाइ नैसेक्के ढिरेसे मनैना अभ्यासके अन्त्य हुइठ । औरे पक्ष कलेक हम्रे अपन पर्वसे औरेक मजा देख्न परिपाटी बा । टबेमारे औरेक लेना ओ अपन छोरल पाजाइठ ।

अन्य समुदाय अपन चाडपर्वहे आकर्षक, डिजिटलाइज ओ फेन्सी बनाइ सिखल, मने हम्रे सेकट नैहुइटि । जस्टे कि क्रिसमस–डेमे झकिझकाउ बत्ति बरना ओ स्यान्टाक्लाउजके अभ्याससे बालबालिकाहे आकर्षित करठ । तिहारमे रंगीबिरंगी टीका, बत्ति बरना ओ भैली खेल्न करजाइठ । तिजमे एक महिना आघेसे दर भात खैना, टमान रेडियोमे एक महिना आघेसे गीत बजाइ लग्ना, नच्ना ओ नाच प्रतियोगिताके आयोजना करना करजाइठ । मने, हमार अस्टिम्कीके न गीत बजठ रेडियोमे ओ नाचे मिल्न गीत बा । अट्वारीमे टे और गाना बजाना कुछ नैहो । ओहे हो एक माया ओ सद्भावके पक्ष दिदीबहिनियाहे अग्रासन डेहे जैना । यीकारणसे अपन चाडपर्व अट्वारीहे कुछ आकर्षण थपेपरठ कना मै यी वर्ष अपन दिदीसे चाउरके उज्जर टीका ओ डौनालौंगारक माला घल्नु ।

का संस्कृति बिगरनु टे मै ?

मै संस्कृति बिगरनु सपरनु यकर जवाफ अब्हि डेहेपरना या खोजेपरना अवस्था नैडेख्ठु मै । अट्वारीमे माला ओ टीका लगाइल प्रभाव कुछ वर्ष पाछे आइ । मने मोर कुछ अपन विचार बा । हम्रे थारुहुक्रे अन्य समुदायके पर्वहे कैसिक अपन बनैलि या अपनैलि टे ? यकर समीक्षा करना आवश्यक बा । यी कहेबेर उ पर्व नामनाउ कहे खोजल नैहो । मनाइ छोरो कहे खोजल फेन नैहो । चाडपर्व मनैना कि नैमनैना कनामे हरेकके अधिकार ओ रहरके बाट हुइ । मने जे महपनहे यी संस्कृति बिगारल, संस्कृति बह्राइल, संस्कृतिमे विकृति थपल कहल उहाँहुकनहे मोर प्रश्न हो । तीज, तिहारमे भाइटीका, क्रिसमस–डे, बर्थ–डे, गुड फ्राइडे, दशैंमे लाल टीका, ताजिया, कर्वा चौथ हमार नैरहे । टबफेन गर्वसाथ मनाइ लग्ली । यि चाडपर्व तथा पूजाहे अपनैलेसे संस्कृति थपल कि घटल टे ? ग्लोबलाइजेशन एक सद्भावके उत्तर डिइ । मने, पहिचान ओ अप्नेन्के प्रतिक्रियाके हिसाब ओ विचारसे टे परसंस्कृति ग्रहण हो । अप्नेन्के यी अभ्यास ओ विचारसे यि चाडपर्व लडल । यि चाडपर्व मनाइबेर अप्नेन्के कुछ नैबोल्लि टे ?

खर्चके हिसाबसे तीज ओ भाइटीकाहे विश्लेषण करलेसे अट्वारी ओ अस्टिमकी कैयौं गुणा कम बा । पश्चिमा डंगौरा थारु समुदायमे अपन दिदीबहिनियाहे अत्यन्त आदर सम्मान, माया जटैना दुई ठो पर्व बा । उ हो, अट्वारी ओ माघ । अट्वारीमे अग्रासन डेजाइठ कलेसे माघमे निस्राउ । जब हम्रे दिदीबहिनियाहे सम्मान ओ माया प्रकट करना, शुभासिर्वाद लेना डेना दुई दुई ठो पर्व बा कलेसे फेर भाइटिका लगैना आवश्यक बा टे ? मै उ लाइनसे प्रश्न करल हो । अन्यथा अर्थ नालागे ।

हो अत्रा माया, सद्भावपूर्ण बेलामे दिदीबहिनियासँग डौना लौंगाराके मगमगैना माला ओ चाउरके पिठोक टिका लगैनाहे विकृति नैहो संस्कृतिमे समृद्धि थपि । अन्य समुदाय फेन आकर्षित हुइ । अट्वारी पर्व सबके साझा पर्व बनैनामे सहयोग मिलि ।

कुछमे बुझाइके कमी फेन बा । डौना र लौंगारा दशैंके देवी देवताहे चह्रासेकलपाछे किल लगाइ मिलठ । उ नैहो । बेबरी (अत्यन्त सुगन्धित ओ शक्तिशाली तथा पवित्र) किल थारुके देवी देवताहे दशैंके बेला चह्रा जाइठ । यी फूला चह्राबेरक एक सम्ह्रौटी (मन्त्रगान) फेन बा,

बेबुरी बिना एक झमकी उरावै, बिना बुन्डा टुहाँर पाऊँ
धनपति धन रे कुबेर टोर नाऊँ, हिरडा बइस मोर डेहो र सिखा
भगमोति शरन लिहबुँ टोर नाउँ, डेबी ढरम डेबी बन्धन बा ।

अइसिक यी मन्त्र उच्चारण सँगे दशैंमे थारुके देवी देवताहुकनहे बेबरी चह्रा जाइठ । डौना ओ लौंगारा फेन अत्यन्त वासनादार ओ सुगन्धित रहठ । मने, यि दुईहे नाचगान हुइल बेला मालाके रुपमे प्रयोग करजाइठ । यि दुई फूला तथा वनस्पतिहे दशैंमे पूजा करेपरि कहिके कुरे नैपरठ । यि जडिबुटी फेन हो । यकर बोट रहल ठाउँमे किरा फेन लागे नैसेक्ठैं ।

अट्वारीके समयमे यि सुगन्धित डौना ओ लौंगारा लहलह फुलल रहठ । यकर माला बनैना कौनो मेरिक मेहनत ओ खर्च नैहो । यी माला गलामे आइठ कलेसे मनैन्मे रहल उदासिनता ओस्टे फेन डुर भागठ । सुबाससे मनमे ओ जिउमे ताजगी आइठ । स्फूर्ति आइठ । ओठमे मुस्कुराहत आइठ ।

यिहेओरे, मोर अनुरोध का हो कलेसे अग्रासन डेके लौटेबेर मट्वार, हिल्टि नैकि, उज्जर टीका ओ डौनालौंगाराक सुबास फैलटि आइ । अट्वारीहे और आकर्षक ओ मायासे भरल बनाके सबके साझा पर्व बनाइ ।

(लेखक जंग्रार साहित्यिक बखेरीके केन्द्रीय अध्यक्ष हुइटैं ।)

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