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काठमाण्डौंमे होरी मिलन तथा खक्डेहरा कार्यक्रम

पहुरा | १७ चैत्र २०८०, शनिबार
काठमाण्डौंमे होरी मिलन तथा खक्डेहरा कार्यक्रम

पहुरा समाचारदाता
धनगढी, १७ चैत ।
रानाथारु समुदायसे आज (शनिच्चर) काठमाण्डौंमे होरी मिलन तथा खक्डेहरा कार्यक्रम कैना जनागिल बा ।
नेपाल रानाथारु युवा समाज काडमाण्डौंके आयोजनामे नेपाल प्रज्ञा प्रतिष्ठान काठमाण्डौंमे होरी मिलन तथा खक्डेहरा कार्यक्रम करे जैटी रहल समाजके अध्यक्ष नवराज राना जनैलै ।

नेपालके सुदूरपश्चिम प्रदेशके कैलाली ओ कञ्चनपुर जिल्लामे बसोबास कैना लोपोन्मुख जातीके रुपमे रहल रानाथारु समुदायसे मनैना मुख्य पर्व होली हो,’ उहाँ कहलै, ‘यी पर्वहे रानाथारु समुदायसे ३८ दिनसम मनैना करठै । अन्तिम दिनहे खक्डेहरा पर्व कहिके मनाजाइठ ।’

कला, संस्कृतिके धनी रानाथारु समुदायहे २०७६ माघ २० गते आदिवासी जनजाति सुचिमे सुचिकृत हुइलपाछे अपन पहिचान पाइल ओरसे पहिल चो अपन भेष–भुषा, कला–संस्कृतिहे राष्ट्रिय तथा अन्तराष्ट्रियस्तरमे चिन्हैना उद्देश्यसे नेपाल रानाथारु युवा समाजसे काठमाण्डौंमे कार्यक्रमके आयोजना करल अध्यक्ष राना बटैलै ।

रानाथारु समुदायके अगुवा, संविधान सभा सदस्य तथा निवर्तमान सुदूरपश्चिम प्रदेशसभा सभा सदस्य मालामति राना होलीके आठौं दिनमे खक्डेहरा पर्व मनैना चलन रहल बटैली । उहाँ कहली, ‘रानाथारु समुदायके खक्डेहरा पर्व यी बरस चैत १९ गते परटा । अपन भेष–भुषा, कला–संस्कृतिहे राष्ट्रिय तथा अन्तराष्ट्रियस्तरमे चिन्हैना उद्देश्यसे होरी मिलन तथा खक्डेहरा पर्वके अवसरमे कैगिल यी कार्यक्रम मजा हो । तराई होली चैत १२ गतेसे सुरु हुइल कलेसे अठुवा दिन चैत १९ गते परटा ।’

रानाथारु समुदायके सबसे भारी त्योहार होरी

रानाथारु समुदायके सबसे भारी त्योहारके रुपमे होरी त्योहार मनाजाइठ । यी त्योहार यसिक भारी हो की माघके पूर्णिमे होरीके आगमनसे शुरु हुके चैतके चरइँमे होरी विदाइसम चल्न करठ । यी बीचमे होरी स्थापनासे खक्डेहरासम अठतिस् दिन लउण्डा लउण्डी होरी खेल्न करठै । होरी माघके पूर्णिमामे होरी स्थापना, फागु पूणर््िमामे होरी दहन, होरी पूजा, फागुके फगोहा ओ हटकना, खक्डेहरामे समापन ओ चैत्रके चराइँमे होरी विदाई करके मनाजाइठ । यी पर्व ओ संस्कार एक दुसरसंग अन्तरसम्बन्धित रहल बा ओ रानाथारु समुदायमे यी त्योहार नम्मा समयसम चल्न हुइल ओरसे यी सबसे भारी त्योहारके रुपमे मनाजाइठ ।

मिथक ओ जनविश्वास

रानाथारु समुदायमे होरी मन्ना परम्परा परापूर्व कालसे रहल पाजाइठ । यी हिन्दु धर्मसंग सम्बन्धित पौराणिक प्रसंगसंग जोरल पाजाइठ । विशेष होरीमे दुई पौराणिक प्रसङ्ग अनुसार हिरण्यकश्यपके छावा पहिलाद (प्रह्लाद) विष्णुके भारी भक्त रहिट मने हिरण्यकश्यप स्वयम् अपनहे भगवान मन्ना करिट । उहाँ चाहिट की मोर छावा मोर गुणगान गाए, मोर पूजा करे मने प्रह्लाद भर विष्णुके गुणगान करिट, उहाँक पूजा करिट । यी हेरे नइसेकल हिरण्यकश्यप पहिलादहे मर्ना टमान उपाय अपनैलै मनै नइसेक्क्लै । एकदिन अपने बहिनीया होलिकाहे विष्णु भक्त पहिलादहे मारे पठैलै । आगीसे नइमुना वरदान पाइल होलिका अपने भतिजुवाहे मुवाईक लाग कोखमे लेके फागु पूर्णिमाके दिन आगीमे चिर ओढके बैठैबेर उ चिरके शीतलताके कारणसे पहिलाद बाँच्ठै । मने होलिका उहे आगीमे जरके मुठी ओ उहे दिनसे प्रत्येक वर्ष फागु पूर्णिमाके दिन साँझ होलिका दहन करके सकारे ओक्रे टिका लगाके असत्यउप्पर सत्यके विजयमे उत्सवके रुपमे होरी मनैना शुरु कैगिल ।

दुसर प्रसङ्ग अनुसार द्वापरयुगमे भगवान श्रीकृष्णसे फागु पूर्णिमाके दिन मथुरासे गोकुलसम गोपनीहुकनसंग रंगके साथ होली खेलल रहिट । उ दिनसे फागु पूर्णिमामे अविर लगाके होली मनाई लागल बा । यैसिक घर–घरमे मथुरासे होरी आइल जनविश्वास रहल पाजाइठ । असत्य जटरा शक्तिशाली बलशाली हुइलेसेफे एक दिन सत्यके अआघे अवश्य हार हुइठ । फागु पूर्णिमामे आपसी रिसराग होलीकासंगे जराके एकापसमे सद्भाव, माया प्रेमके सम्बन्ध कायम करटी सहयोग ओ विश्वास स्थापित करटी होरी खेल्ना जनविश्वासफे रहल पाजाइठ ।

होरीके स्थापना

माघ पूर्णिमाके दिन गाउँके कुलदेवताके भुँइयाके लग्गे कण्डा, काठी, टिटरो, मिठाई, भेँट चढाके विधिविधानके साथ होरी स्थापना करजाइठ । उ दिनसे जिन्दा होरी खेल्न सुरु हुइठ । होरी दहन मंगरबाहेक और जौनफे दिन जैसिन अवस्था आइठ, ओस्टे साँझ या बिहान होरी दहन करजाइठ । होरी दहन करे पुरुष मनै होरी स्थापित ठाउँमे जाके चाकर या भलमन्सासे घर–घरसे उठाइल भेट (पूजा सामग्री) से पूजा करके होरीके पुत्ला जरैना करजाइठ । ओकरपाछे ‘होरीमे आगी लागल होरीमे आगी लागल कहटी जोर–जोडसे हल्ला करठै । आगी लगाके उहे आगी एक सासमे दगुरके पधनाके कुँवा या नल्काके खटहामे डरठै । गदरियाके मन्त्री राना कहठै, ‘होरी दहन करेबेर पहिले–पहिले एक ठो जिट्टी चिङगनीयफे जराजाए मने अचकल खुनके सट्टा सुपारी चढाजाइठ । पूजाके लाग लैगिल मिठाइ, पुरी उहे बाँटके खैठै मने फिर्ता नइलन्ठै ।’

होरीके टीका

होरी दहनके दुसर दिन टीका हुइठ । होरी जराइल ठाउँमे जाके ओम्नेहे केक्रो पटिया डारके ओकर टीका लगाजाइठ ओ ओकरे टीका एक दुसरके लिलहारमे लगाके होरीके शुभकामना साटासाट करजाइठ । लउण्डा मनै मतबरिया ओ लउण्डी मनै छैलाके रुपमे उहे टीका लगाके कुछ समयसम होरी खेल्ठै । ओकरपाछे डगरभर गीत गैटी पधना या भलमन्साके घरमे आके होरी खेल्ठै ।

जिन्दा होरी ओ मरी होरी

होरी स्थापना करलथेनसे होरी दहन नइहुइटसम साँझ खाना खाके लउण्डा लउण्डीहुक्रे डंकाके तालमे गीत गैटी होरी खेल्न करठै, जिहीहे जिन्दा होरी कहठै कलेसे होरी दहनके दिनसे खक्डेहरासम खेल्ना होरीहे मरी होरी कहठै । होरीमे रामायण, महाभारतके कथामे आधारित गीत गैटी ठडौवाँ होरी, मतबरिया होरी, लोहकौवाँ होरी, सादा होरी, बधाइ होरी, खिचडी होरी, गडवाली होरी यी टमान मेरिक होरी खेल्जाइठ ।
होरीमे पूजापाठ
होरीमे पूजापाठ आ–अपने कुलदेवता अनुसार हुइना करठ । यी कुलदेवताके पूजा हो । कुल अनुसार पूजा फरक–फरक हुइना करठ ओ यी पूजा सक्कुहुनके घरमे भर नइरहठ । जेकर कुलदेवता यी पूजा लेना करठै, उ केल पूज्न करठै । कुलदेवता अनुसार कोई जिन्दा होरी पूजन (होरी स्थापित करलथेनसे) करटै कलेसे कोई मरी होरी पूजन करठै । पूजामे चिनी दारके बनाइल पुरी जोडामे, घिउ, पानीसे अगियारी करठै मने केक्रो घरमे छुट परल य जेकर घरमे कुल देवता नइहुइट अर्थात जे सरकार भगत बटै, ओइने यी पूजा नइकरठै ।
खक्डेहरा
होरी दहनके आठौँ दिनमे हप्ताके जौन बार परलेसेफे खक्डेहरा पर्व मनाजाइठ । खक्डेहराके दिन बिहान पाँच बजे ओर काँच्चे माटीक सात–सात गोली (मटेंग्रा) एक–एक ठो सिन्कामे गुहजाइठ । माटीक तीन ठो दिया बनाके एक दियामे सात मेरिक नाज (जस्टे चना, केराउ, लाही, मसुरी आदि) धारजाइठ । दुसरा दियामे कपास धारजाइठ ओ टिसरा दिया बारजाइठ । ठोरचे बैठाबन्नी (सिन्का रहल बहरनी) धारके एक खिप्टामे (खप्टेरो) धारके साथमे एक लोटा पानीफे लैजाजाइठ । गाउँके पधना या गाउँके भारी मनै जे पुर्खौसे खक्डेहरा फोरना करठै, ओइने हरके फाँरहसे (परिहारी) घिउ लिके घरसे आइठै । जे–जे फुटाई जैठै, ओइनके घरसे एक जाने जे कोईफे दिया रहल उहे खिप्टा लेके ‘आबओ रि अँधरी धुँदरी लँगडी लुली’ कहटी गाउँके दक्षिणओर गाउँसे बाहेर जैठै । गाउँके भारी मनै घर–घरसे गैल पूजाके समान एक ठाउँमे धारे लगैठै ओ सक्कु जाने वहाँ धारके दुसर जैठै । एकजाने मुख्य मनै खक्डेहरा फुटाई लागलपाछे असामी पाछे लौटके नइहेरठै ओ उहेसे होरीके विदाईफे हुइठ । पुर्खा कहठै खक्डेहराके दिन जेकर घरमे खुशी आइठ, जस्टे कि घरमे बच्चा जन्मल, भैँसीनिया व्याइल अर्थात् मजा हुइल, उ उहे दिनसे खक्डेहरा फुटाई लग्ठै । ओ, खक्डेहराके दिन जेकर घरमे नइमजा घटना घटठ उ दिनसे खक्डेहरा फुटाई छोरठै । सक्कु जाने खक्डेहरा नइफुटैठै ।

फगोहा ओ हटकना

फागुनके फगोहाके विशेष महत्व रहठ । फागुमे फगोहा मग्ना ओ फगोहा डेना एक ठो संस्कार रहल बा । फगोहा दुई मेरिक चल्ना करठै । पहिल होरी दहनसे खक्डेहरासम फगोहा मग्ना ओ डेना चलन रहल बा । होरी खेल्न लउण्डी सकारे गाउँके भलमन्सा, प्रधान, पधना, चाकर गाउँके जन्ना मन्नाके घरमे जाके फगोहा मग्ना करठै ओ साँझ परलपाछे होरी खेल्न करठै । दुसरा नातामे भाटु, नन्दुइया ओ मित परुइया होरी दहनके दिनसे विषेश करके अपन साली, ठकुराइन, सरहज, सैनारहे फगोहा डेहे जैना चलन रहल पाजाइठ । ओस्टेक हटकना कैनाफे आपसी आत्मियता ओ सौहार्दताके लाग विशेष महत्व रख्ठै । पाहुनाके लाग आज मोर घरमे खानपिन बा कहटी अपन घरमे खानपिनके व्यवस्था बनैना हटकना हो । विशेष करके होरीमे अपन आफन्तहे अपन घरमे बोलाके मिठ–मिठ खैनाचिजसे स्वागत करजाइठ । विशेष जे फगोहा डेले बा, उहीहे टे अनिवार्य रहठ हटकना नैटे पाप लागठ कना मान्यता रहल बा । अचेल फगोहा डेना ओ हटकना खवैना परम्परामे भर कुछ कमी भर आइल विल्गाइठ ।

होरी विदाई

होरीके विदाई चैतके चराइँमे करजाइठ । चराइँ गाउँके पूजा हो । उ दिन गाउँके प्रत्येक घरसे अन्दिके मिठ भात ओ विशेष मच्छीसहितके अन्य टिना पकाके संगे लैजाके गाउँके बाहेर जाके दिनभर ओहरे बैठै । साँझके गाउँके भर्रा वा गुरुवासे पूजापाठ करसेकलपाछे सक्कु जाने होरी खेलके गाउँसे बाहेर ‘आज होरी गई रे बलमु परदेश’ कना गीत गैटी होरीहे पठाके लौटठै । उ दिनसे होरी फेर मथुरा जाइठ । यैसिक वर्ष दिनपाछे आइल होरी ओराइठ ।

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