थारु राष्ट्रिय दैनिक
भाषा, संस्कृति ओ समाचारमूलक पत्रिका
[ थारु सम्बत १५ बैशाख २६४९, सोम्मार ]
[ वि.सं १५ बैशाख २०८२, सोमबार ]
[ 28 Apr 2025, Monday ]

अष्टिम्की पर्व ओ अष्टिम्की चित्रकलाके महत्व

पहुरा | १४ भाद्र २०७८, सोमबार
अष्टिम्की पर्व ओ अष्टिम्की चित्रकलाके महत्व

विषय प्रवेशः

चाडपर्व (टरटिहुवार) मनैन्हे चौकस ओ चम्पन बनाइठ । हरेक जाति समुदायके अपन मौलिक तौरतरिकासे मन्ना टमान चाडपर्व रहठ । थारू एक अलग पहिचान डेना मेरिक अपन भाषा संस्कृति एवम् सामाजिक रीतिरिवाज रहल जात हो । थारू जात अन्य जातहुकन जस्टे अनेकौ चाडपर्व मनैटि आइल बा । उमध्ये : १. माघ, २. बर्का डश्या, ३. फगुई, ४. होरी, ५. डेवारी, ६.बर्का अट्वारी, ७. अष्टिम्की, ८. गुरही, ९. बर्का पूजा, १०. हरेरी, ११. धुरेरी, १२. हरढावा जस्टे टमान पर्व सामूहिक रुपमे मनैटि आइल बा । थारूहुकनके अष्टिम्की एक महत्वपूर्ण महिलाहुक्रे मन्ना टिहुवार हो ।

अष्टिम्कीके तयारीः

यी पर्वके आगमनके क्रममे तयारी सुरु करजाइठ । चित्र बनैना भित्ता उज्जर माटिसे पोटजाइठ । अस्टेक मिठ मिठ टिनकके फेन जोहो करल रहठ । जस्टे, केरा पकैना, दही जमैना, बारिक खिरा, अमरुट (अम्बा) आदि फल ओहे दिनके लाग बचाइल रहठ । ब्रतालुहुक्रे महिला, युवतीहुकनके लाग अनिवार्य नयाँ कपडा किनके सिवाके ठिक बनाइल रहठ ओ गरगहना फेन व्यवस्था करल रहठ ।

अष्टिम्की चिनारी:

अष्टिम्की पर्व खास करके महिलाहुक्रे मनैना पर्व हो । मने आजकल्ह कुछ युवाहुक्रे फेन यी ब्रत बैठे लागल बटैं । यी पर्व भाद्र महिनाके अष्टमीके दिनमे गाउँके बरघ¥या वा महटाँवाके घरके भित्ता वा डेहरीमे कृष्ण चरित्र सम्बन्धी टमान वृतान्तहे चित्रके रुपमे बनाइल चित्रके पूजा अर्चना करजाइठ । यी पर्व कपिलवस्तु, रुपन्देहीसे पश्चिम दाङ, बाँके, बर्दिया, कैलाली, कञ्चनपुर, सुर्खेतमे धुमधामाके साथ मनाजाइठ । सप्तमीके रातमे मुर्गा बोल्नासे पहिले रातके मिठ मच्छी, अन्य टिना पकाके दर खैना चलन रहठ जिहिनहे थारू भाषामे डट्कन खैना फेन कहिजाइठ । ओकरबाद अष्टमीके दिनभर ब्रतालुहुक्रे निराहार ब्रत बैठ्ठैं । बिहानसे अष्टिम्कीके चित्र बनैना कार्यमे लागल रठैं । चित्र बनुइयन फेन निराहार रठैं । चित्र बनैना ठाउँमे ब्रत नैबैठल मनै जैना वर्जित रहठ ।

साँझके ब्रत बैठल महिला दिदीबहिनियाहुक्रे लहाखोरके सिंगारपटार गरगहना पहिरके टठियामे चाउर घुन्यासरके फूला, बरल दीया, एक जोर कगडी वा निम्वा, लाल सेन्दुर, धुप आदि लेके अपन कुल देउताके थानमे दिया बारके प्रत्येक ब्रतालुहुक्रे घर घरसे निकरके अष्टिम्की चित्र बनाइल महाटाँवाके घरमे जम्मा हुइठैं ओ टठियामे नानल फूला, चोर, कगडी ओहे पूजा करना कोठामे लामबद्ध ढरके घरमुलीसे पूजापाठ सुरु हुके पालिकपाला सबजे भित्तक चित्रमे बनाइल चित्रमे टिका लगाके पूजा करठैं । पूजा करके युवा लवण्डन महिलाहुक्रे नानल निम्वा कागडीक भेठ्नी काटके भेठ्नी किल ढरके निम्वा, कागडी लेके जैठैं । यी काम प्रायः लवण्डन अपने मन पराइल लवण्डिक ढरल युवतीके निम्वा वा कागडीके भेठ्नी कट्ना प्रचलन बा । टबेमारे लवण्डन उ बेला तछाडमछाड करल दृश्य रमाइलो ओ हेर्न लायक रहठ । यीपाछे ब्रतालुहुक्रे अपनअपन घर जाके टमान मेरिक फलफूल परिकार एक भाग अलग्याके एक एक चुटि सब फलफुलके भाग चिकुटके अग्नीमे हवन करके धुप बारके पुजापाठ करके पानीसे छिट्के फलफुल खाके पुनः महाटाँवाके घर जाके रातभर कृष्ण लीला गीत गैना, नच्ना करठैं । अष्टिम्की गीत गैनासे पहिले चारु दिशाके देवता एवम् देवी दुर्गाहे स्मरण करके किल गीतके सुरुवात करेपरठ ।

सम्ह्रौटी:

पूरुब मै सुमीरौ सुरज गोसाइँ
पछिउँ मै सुमिरौ रमझम (निरञ्जन) देवी खरतारे ।।१।।
उत्तरे मै सुमिरौ हरि कविलासे
दक्षिण सुमिरौ शिव जगन्नाथ ।।२।।
आकाश सुमिरौ इन्द्र ओ चन्द्र
पाताल सुमिरौ बासुकी नाग ।।३।।
पहिल मै सुमिरौ गउँकी भुइह्यार
हमारी मेररिया दिउँता करही रक्षा पाल ।।४।।
दिहबु मै सुमिरौ देउ देवारिन
हमरी मेररिया करो रे रक्षा पाल ।।५।।
मेररिया मझिमारे सुमिरौ मै टुही
कण्ठ बैठो मोर गीत देहूँन सिखाइ ।।६।।

पूर्वमे सूर्य देवता, पश्चिममे रमझम निरञ्जन देवी, उत्तरमे पाटन देवी (हरि कविला), दक्षिणमे शिव जगन्नाथ, आकाशओर चन्द्र ओ ईन्द्र पातालमे बासुकी नाग देवता ओ गाउँक साझा ठन्वा भुइहयार (मन्दिर) आदिके स्मरण करके किल यी पर्वके कृष्ण लीला थारु गीत गाजाइठ ।

अष्टिम्की गीतके कुछ अंशः

पहिल त सिरीजित गैल जलथल धरती
सिरीजित त गैल कैल कुश रे दाप ।।१।।
दुसर त सिरजल अन्न कही पात
सिरीजित गैल अन्न कही विरोग ।।३।।
तिसर त सिरजल अन्न कही डार
सिरिजित गैल अन्न कही फल।।४।।
चौठा सिरिजित गैल अन्न कही फूल
सबहु देउता हो मिली लेउ फुल वास ।।५।।
सिरिजित गैल कारी मनखवा
कारी मनखवा कल मै बरी बाटुँ ।।६।।
कारी मनखवा कहल मै बरी बाटुँ
दिउता जे कहल मै बरी बाटु ।।७।।
कारी मनखवा कहल मै बरी बाटुँ
सिरिजित गैल बिरछिक रुखवा ।।८।।
बिरछि चरहल बारु कन्हैया
बिरछि चरहल बारु कन्हैया किचिर किचिर बोल ।।९।।

यी संसारमे सबसे पहिले जल ओ थलके उत्पत्ति हुइल । टबसे क्रमशः कुश, अन्न, फल, मानव, रुख विरुवा आदिके उत्पत्ति हुइल हो कना बाट गीतमे रहल बा । रातके महाटाँवाके घरमे जग्राम रहिके बिहान सबजाने काल्हके टठियामे बरल दिया, फुला, निम्वके भेठ्नी, अछेता पत्ता आदि लग्गेक लडियामे अस्राइ जैठैं । विशेष सजधजके साथ सजल युवतीहुकनके लाइन एकडम सुन्दर ओ मनमोहक रहठ । लडियासे अस्राके लहाखोरके घर लौटके गोब्राके भान्सामे पकाइल चोखो पवैके साग, मासके गेडाके टिना, मच्छी आदिके परिकार सहितके खाना तयार हुइठ । यी सब परिकार टिना छुट्टे टेपरीमे एक भाग अलग्गे ढरजाइठ । यिहिनहे अग्रासन फेन कहिजाइठ । ओकरबाद उ टिना, भात सब मिलाके अग्नीमे हवन करके पुजापाठ करके खैठैं । छुट्याइल अग्रसानहे भ्वाज करल महिलाहुक्रे भर माइतमे अपन दाजुभैयाहे डेहे जैठैं ।

कौन कौन भगवान एवम् प्रकृतिके पूजा करजाइठ ?

थारूहुक्रे प्रकृतिपूजक जात हुइँट् । उहाँहुक्रे अपनसँग जा बा उहिनहे उपयोग करना करठैं । जीवनयापनके क्रममे जाजा प्रयोग ओ उपयोगी हुइल उ सबहे सम्मान करल चित्रके पूजा हो अष्टिम्की ।

चित्रमे बनाइल चित्रके नामके सूचीः

१. कृष्ण (कान्हा), २. (सूर्य) दिन, ३. चन्द्र (जोन्ह्या), ४. पाँच पाण्डव (पाण्डो), ५. कौरव (कौराओ), ६. डोली, ७. बनुवा, ८. मञ्जोर, ९. ऊँट, १०. हात्ती, ११. नाउ (लाउ), ११. बाँसुरी बजाइल कृष्ण (कान्हा), १२. कुकुर (कुक्रा), १३. रावण (रौना), १४. सर्प (सप्वा), १५. राम ओ सीताके अभिभावक, १५. घोडा (घो¥वा), १६. भाले (मुर्घा), १७. माछा (रैनी मछरिया), १८. रुख, १९. बाँदर, २०. बाघ (बग्घ्वा), २१. पुरैत पाता (कमल फूलके प्रतिक) अइसिक टमान प्राकृतिहे पूजापाठ करना पर्व बारे टमान मिथक रहल बा । यी पर्वके चित्र खासमे मूल खाकाके भित्तर तीन ठो बोर्डरमे चित्र अङ्कित कराके बनाजाइठ ।

१. कृष्ण (कान्हा): यी भित्ताके सबसे उप्पर भागमे रहठ ओ चित्रके तरेक रुखवामे फेन बाँसुरीसहित चित्रित रहठ । यी पर्वके मूल नायक कृष्ण हुइँट् । उहाँ सब जीवजन्तु, पशु प्राणीहे अपन बाँसुरीसे मोहित बनैना कला रहल ओरसे रुखवक टिप्पामे बैठ्के बाँसुरी बजाइल चित्र रहठ । उहाँक विशेष पूजा आराधाना करजाइठ ।

२. सूर्य (दिन): थारू जाति प्रकृतिके पुजक हुइँट् । यी भित्ताके बाँयाओर अङ्िकत रहठ ।

३. चन्द्र (जोन्ह्या): यी पर्वके चन्द्रमाके फेन पूजा करजाइठ । अष्टिम्की चित्रके दायाओर अङ्िकत रहठ ।

४. पाँच पाण्डव (पाण्डो): थारू समुदायमे पाँच पाण्डव विशेष पूज्य देवताके रुपमे मानजैठैं । पाँच पाण्डव हरेक गाउँके साझा ठन्वामे विशेष स्थान रहठ । यी पर्वमे चित्रके पहिल पंक्तिमे रहल रठैं । उहाँहुकनके हातमे छाता पकरल चित्र बनाजाइठ ।

५. कौरव (कौराओ): यी पर्वके दोसर लहरमे कौरवहुक्रे फेन स्थान पैले बटैं । पाण्डवहुकनसे टरेक पंक्तिमे कौरवके चित्र रहठ । उहाँहुक्रे ठोरचे उग्र प्रवृतिके रहल ओरसे हातमे बन्दुक पक्रल चित्र बनाइल किंवदन्ती रहल बा कलेसे औरे मत अनुसार कहुँ कहुँ यी लहरमे महिलाके चित्र फेन पाजाइठ । महिलाके चित्र भर सोह्र हजार गोपिनीहुकनके सङ्केतके रुपमे रहल ओरसे महिलाहुकनहे पुजल मिथक फेन बा ।

६. रौना (रावण): अचमके बाट अष्टिम्की पर्वमे बाह्र ठो कपार रहल रावणके फेन चित्र अङ्कित रहठ । यकरमे टिका नैलगैठैं । विशेष करके छोट छोट लवण्डिन किल यकरमे टिका लगाके घाउ खटरा नाहोए, बिरामी नाहोए कहिके पुकारल पाजाइठ । यी चित्रके बारेमे विद्वान महेश चौधरीके फरक मत बा । यी चित्र रावणके नैहुके सृष्टिकर्ता ब्रम्हाके हो । कालान्तर चित्र बनाइबेर कपार धेर देखके रौना (रावण)के हो कहिके व्याख्या करल तर्क करठैं । औरे विद्वान अशोक थारू, डा. कृष्णराज सर्वहारी आदि बाह्र ठो मुन्टा रहल ओरसे पूर्खाहुक्रे बरमु¥वा कठैं । यकर अर्थ बाह्रठो मुन्टा रहल बुझाइठ । अभिन यी बारे अनुसन्धान करना जरुरी बा ।

७. अस्टेक, अष्टिम्कीके चित्रमे प्राचीन समयमे समयके सूचक मन्ना मुर्गा, घरके रक्षक कुकुर, जङ्गलसँग निकट रहल कजरिक बन्वा (वन), हात्ती, बाघ, बाँदरके टमान प्रकृतिके पूजा यी पर्वमे करजाइठ ।

८. मच्छीः खास करके मच्छी थारू समुदायमे विशेष मानजाइठ । यी मच्छीहे रैनी मछरियाके नामसे पुजजाइठ । यी धरतीके सृष्टिसँगे सबसे पहिले मच्छीक अवतार हुइल ओ कृष्ण (कान्हा) के पिता बासुदेव (ईसरु) खेती पातीके लाग हर, जुवा आदि काटे जैना क्रममे लडिया नाँघेबेर ओहे मच्छीमे बैठ्के लडिया नाँघल किंवदन्ती थारु अष्टिम्की पर्वके गीतमे उल्लेख बा । हरेक शुभ कार्यसे मृत्य संस्कारमे समेत प्रयोगमे अइना मच्छीहे रैनी मछरियाके नाममे पुजजाइठ । अष्टिम्की पर्वमे फेन फलहार करेबेर अनिवार्य मछरिक पकवान रहठ ।

९. अस्टेक डोली, रामके पिता दशरथ ओ सीताके पिता जनकके सम्धी सम्धीके चित्र, मुजुर, नाउ, ढिंकी, हर जोतलके चित्र आदि टमान चित्रमे पूजापाठ करना यी पर्वके विशेषता हो ।

अष्टिम्की पर्वके महत्व:

हरेक चाडपर्व अपन महत्व बोकले रहठ । अष्टिम्की पर्वके फेन विशेष महत्व बाः

  • थारू सब महिला दिदीबहिनियाहुक्रे सामूहिक ब्रत बैठ्ना हुइल ओरसे समाजमे एकता कायम करठ ।
  • दाजुभैया दिदीबहिनियाहुकनबीच प्रगाढ सम्वन्ध बनाइठ ।
  • प्राकृतिक रुपमे टमान जीवजन्तुके पूजापाठ करना यी पर्वमे प्रकृतिसँग निकट सम्वन्ध रहल बुझाइठ ।
  • अष्टिम्कीके गीतमे यी ब्रम्हाण्डके सृष्टि हुइलेसे लेके सबसे पहिले का–का के सिर्जना हुइल कना आख्यानसे उ सिर्जित प्रकृतिके पूजा होके प्रकृति पुजक जातके रुपमे चिन्हाइठ ।
  • गाउँभरिक महिला, युवतीहुक्रे नयाँ कपडा सजधजके साथ प्रत्येकके हात हातमे दियासहितके टठियासे साँझके दृश्य ज्योर्तिमय बनाइठ । यी गाउँमे रौनकता बह्राइठ ।
  • ब्रत बैठलबाद मनोकाङ्क्षा पूरा हुइना जनविश्वास रहल ओरसे भक्तिपूर्वक मनैना यी चाडसे प्रकृति ओ भगवानप्रतिके आस्था जगैले बा ।

निष्कर्षः

चाडपर्वके अपन मूल्य मान्यता ओ महत्व रहठ । थारू जातिमे विधिवत रुपमे महिला किल निराहार ब्रत बैठ्ना यी पर्व काल्हके दिनमे जोन मेरिक मनाजाए । आजकल्ह सामान्य औपचारिकतामे सीमित हुइल पागिल बा । गाउँभरिक महिलाहुक्रे एक्के ठाउँमे जम्मा हुके मनैना यी पर्वमे आजकल्ह एक्केलि अपन कोठामे कृष्णके फोटु नानके पूजापाठ करना प्रवृति बह्रल ओरसे सामाजिकतामे कमि महशुस करे सेकजाइ । कोइ धनीमानी व्यक्तिके तडकभडकसे समाजमे असर पुगल पाजाइठ । ओहे कारण परम्परासे चलल अपन मौलिक परम्पराहे संरक्षण करटि मौलिकपनहे आत्मसात करके मनैना जरुरी बा ।

सन्दर्भ सूची:

  • कोपिला छविलाल हमार संस्कृति (२०७१) आदिवासी जनजाति राष्ट्रिय प्रतिष्ठान जावलाखेल काठमाडौं ।
  • चौधरी पन्ना मानबहादुर थारु सख्या नाच गीत (२०७०) युनिक नेपाल बर्दिया ।
  • डा. दहित गोपाल थारू संस्कृतिको परिचय (२०७७) युनिक नेपाल बर्दिया ।
  • डा.सर्वहारी कृष्णराज बिहान (२०५८) थारू युवा विद्यार्थी परिवार, काठमाडौं ।
  • शत्रुघन चौधरी अष्टिम्की गीत (२०७४) आदिवासी जनजाति राष्ट्रिय प्रतिष्ठान जावलाखेल काठमाडौं ।

वीरेन्द्रनगर, सुर्खेत

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