थारु राष्ट्रिय दैनिक
भाषा, संस्कृति ओ समाचारमूलक पत्रिका
[ थारु सम्बत १३ बैशाख २६४८, बिफे ]
[ वि.सं १३ बैशाख २०८१, बिहीबार ]
[ 25 Apr 2024, Thursday ]
‘ कविता ’

हमे छक परछिन

पहुरा | १८ पुष २०७७, शनिबार
हमे छक परछिन

क्रन्तिके खातिर उठल करमठ हाथसव
कुरसीके खातिर सदैये झुकल देखछिन ।
जनपछिय कहलावे वला नेतासव
पैसाके लालचमे बिकल देखछिन, त
हमे छक परछिन ।
माटिके अधिकार आने साकवु कहेवलासव
न्यायके खातिर सडकमे उतरल देखछिन ।
क्रान्ति देखिके डरावेवला आदमीसियाके
सहिदके सुचीमे नाम देखछिन, त
हमे छक परछिन ।
नारी सुरछाके भासन हाकेवलासव
आपने घरमे मौगीके पिट्ते देखछिन ।
दारुके जोसमे होस हरावेवलासव
समाज सुधारके सिद्धान्त जपते देखछिन, त
हमे छक परछिन ।
कुवेरसे बढखी धनिक कहलल व्यक्ति सियाके
समाजमे सोसन करते देखछिन ।
धार्मिक काममे सर्वस्व खरचा करवी कहते कहते
एकटा मङनियाके सिदुवारीसे घुमते देखछिन, त
हमे छक परछिन ।
चटियासव आपन परिश्रम बिसर्या क्याके
विदेससे सर्टिफिकेट आयात करते देखछिन ।
घरसे स्कुल जेछिन कहिक्याके निकलेवलासव
जव विद्वान चलचित्र भवनमे देखछिन, त
हमे छक परछिन ।
वातावरण संरछनके भासन करेवलासव
खुद आफ्ने जंगल मास्ते देखछिन ।
जातियता उत्थान करेवला व्यक्तिसियाके
जव, मातृभसा बोल्ते नै सुनछिन, त
हमे छक परछिन ।

मोरङ

जनाअवजको टिप्पणीहरू