थारु राष्ट्रिय दैनिक
भाषा, संस्कृति ओ समाचारमूलक पत्रिका
[ थारु सम्बत १४ बैशाख २६४९, अत्वार ]
[ वि.सं १४ बैशाख २०८२, आईतवार ]
[ 27 Apr 2025, Sunday ]
‘ कविता ’

पस्ना

पहुरा | २५ पुष २०७७, शनिबार
पस्ना

सोन केक्रोे कल्पनामे नै फरठ्,
केक्रो सपनामे फेन नै फरठ्,
न ट फरठ्, केक्रोे भावनामे
उ टे फरठ्,
पस्नक बहटु लडियक् बिचमझुवामे ।

भुँख्ले पेट पस्ना चुहाके
जमिन उर्बर बने सेकठ्
समठर हुइ सेकठ्,
ओ, फराक फेन हुइ सेकठ्
मुले, इ ढर्टिमे
अँखुवा निकरके हरेर बने नै सेकि ।
अँखुवा टे गुड्गर डानामे निक्रठ् ।
मुले, इहे डसा भोग्टि बा
मोर माटि
ओ, निरिह जिन्गि जिटि बा पस्ना ।

टिपुन्ना टुरके
हरेर बैठाइ नै सेक्जाइ
न टे सेक्जाइ,
जिन्गिक् साँस फेरे
जिन्गि ओज्रार पर्ना टे
पस्नासे लहाके
हरेक आँखिमे घाम लागे परठ् ।

पस्ना लुटे
यहाँ एक बगाल भ्रम
रंग–विरंग फुलुङ्गा उरैठाँ हावामे
आपन ओर टानक् लग
डोसर बगाल झुठ
मनभरके आस्वासनके भुवा उरैठाँ
मुले, पस्ना आपन विवेकमे
लडिया बनके लग्टार बह्टि रहठ्
यहोंर, भ्रम ओ झुठ
डुनु पाँजरसे हेर्टि रठाँ पस्नाहे ।

टब,
सटरंगि इन्डे«नि उँप्पर चौर्हके
जब, पस्ना ढर्टिमे अँराइठ्
पियासेले छट्पटैटि रहल्
मोर माटि हाँसठ्
ओ, सुन्डर सिर्जना करठ् ।
यहोंर, आढा राटमे मनके टलवाभर
परैन फुले लागठ्
ओ, अमावसके अँढरिया राट फेन
मुस्कुराइ लागठ् ।

लमही नगरपालिका–८, उत्तर मजगाउँ, देउखुरी–दाङ

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