मधेशसे कर्णालीमे राजनीतिक संस्कार मजा बा, विभेद भोगे नैपरल हो

पहुरा समाचारदाता
सुर्खेत, ७ फागुन । मधेशी समुदायके पहाडियाप्रति सदा एक ठो गुनासो रहठ, हम्रहिनहे देसी कहिके हेपठै, इन्डियन (भारतीय) के बिल्ला भिरैठै । नम्मा समयसे कर्णाली प्रदेशहे कर्मभूमी बनाइल मधेशी समुदायके प्रतिनिधिसे भर कर्णालीमे ओसिन विभेद भोगे नैपरलमे गर्व करले बटै । तराई मधेशके टमान जिल्लासे कर्णालीमे विशेष करके शिक्षण ओ व्यापार व्यवसायके सिलसिलामे यहाँ आपुगल ओइनहे एक्क थलोमे जुराइल हो, कर्णाली उत्सव, कुडा कर्णालीसे ।
मध्यपश्चिम विश्वविद्यालयमे कार्यरत उपप्राध्यापक इन्जिनियर हरिनारायण यादवसे सहजीकरण करल कर्णालीमे मधेश नामक सत्रमे सहप्राध्यापक डा विनयकुमार दास, प्रधानाध्यापक श्रवणकुमार शर्मा ओ नेपाल नाई संघ सुर्खेतके अध्यक्ष अर्जुन ठाकुर मधेससे आके कर्णालीमे बैठलके अनुभव सुनैलै । मने उ अनुभव तित नैरहे ।
२०४७ सालसे वीरेन्द्रनगर बहुमुखी क्याम्पसमे प्राध्यापनके लाग सुर्खेत आपुगल सहप्राध्यापक विनयकुमार दास मधेशसे कर्णालीमे राजनीतिक कल्चर मजा रहल बटैैलै । ‘जौनफे पार्टीके हुइलेसेफे मेलमिलाप, आपसी समन्वय मजा बा, मै आइल बेला भर्खर बहुदल आइल रहे, उहाँ कहलै, ‘टबसे हेरटी आइल बटु, यहाँ राजनीतिक दलसे मिल्के काम करल डेख्ठु मने मधेशमे ओसिन नैडेख्ठु ।’ मधेशके राजर्षी जनक विश्वविद्यालय ओ मध्यपश्चिम विश्वविद्यालय एक्के दिन स्थापना हुइलेसेफे राजर्षी जनकसे मध्यपश्चिमसे मजा प्रगती करल टिप्पणी करलै । मधेशमे राजनीतिक संस्कार ओ राजनीतिक प्रणाली मजा नैहुके उहाँक सार्वजनिक संस्थासे प्रगति करे नैसेकल उहाँक कहाई रहे ।
‘कर्णालीके हावापानी मजा बा, न ज्यादा गर्मी न जार, मनै फे मनैहस पैनु, हम्रहिनहे मधेशी विभेद नैहो, दास कहलै, ‘ठोरचे मधेससे कर्णालीके विद्यार्थी कम अध्ययन कैना पैनु, पढाइहे ओटरा महत्व डेहल नैपैनु ।’
सुर्खेतके बराहतालस्थित नेपाल राष्ट्रिय प्रावि स्याउलेके प्रधानाध्यापक श्रवणकुमार शर्मा कर्णालीमे शिक्षक, कर्मचारीहे काम कैना मजा वातावरण रहल बटैलै । २०७२ साल अगहनसे सुर्खेत कार्यक्षेत्र बनाइल सप्तरीके उहाँ अपनहे कर्णाली छोरके मधेश जैना मन नैलागल बटैलै । महीहे सुर्खेतसे टे बराहताल छोरन मन नैलागठ, ढेर जाने माया करठै, मै विभेद कबु खेप्ले नैहु, उहाँ कहलै ।
वीरेन्द्रनगरमे २०४६ सालसे हजाम व्यवसाय सञ्चालन करटी आइल महोत्तरीके अर्जुन ठाकुर अपने मधेशी समुदायके रुपमे कौनो मेरके विभेद भोगे नैपरल बटैलै । हम्रहिनहे कौनो विभेद नैहो, यहाँक मनै असाध्यै मिलनसार, सहयोगी पैले बटु, उहाँ कहलै, कर्णालीबासीके अगाध मायाके कारण मधेश जैना मन नैलागठ ।
