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पुसे औंसीसे सुरु हुइल भुवा पर्व

पहुरा | १९ पुष २०७८, सोमबार
पुसे औंसीसे सुरु हुइल भुवा पर्व

पहुरा समाचारदाता
धनगढी, १९ पुस ।
सुदूरपश्चिममे मनैना भुवा पर्व सुरु हुइल बा । पुसे औँसीसे विधिवत रुपमे भुवा पर्वके सुरु हुइल हो । सुदुरपश्चिम प्रदेशके पहाडी जिल्लामे खेल्ना भुवा पर्व पछिल्का समय तराईके जिल्लामेफे मनैना करल बा ।

अयोध्याके राजा राम ओ रावणके लडाइपाछे राजा रामके विजय हुइल पौराणीक कहाई अनुसार औसीके अघिल्का रात अर्थात पुस औसीके अघिल्का रात (राका) बारके स्थानीय भाषामे (चेणे) सल्कैना कहिके ठेङरा बरना करठै । ओस्टेक करके पाण्डव ओ कौरवके लडाँइसंग सम्वन्धित पौराणिक कहाई अनुसार ५ दिनसम ढाल तरवार सहित चाली खेल्न मुख्य प्रचलन रहल बा ।

त्रेतायूगमे पाण्डव ओ कौरववीचके लडाई सेकलपाछे पाण्डवपक्षसे खुसियाली मनाइल दिनमे यी पर्व मनैना करजाइठ । भुवामे फे मीठा मसिना पकाके खैना भगवान, कृष्ण, स्वर्गके राजा इन्द्र ओ पाण्डव गौरव गाथा गैना प्रचलन रहल बा ।

होरिनुकमे पाण्डवसे प्रयोग करल हुलिया जस्टे वस्तुके प्रर्दशनसंगे उ अवस्थामे साथ डेना जंगली जनावरके तस्वीरफे लाखे नाचके माध्यमसे मनैना करजाइठ ।

ओस्टेक धनगढीके खुल्लामञ्चमे सुरु हुइल भुवा पर्वके सुदूरपश्चिम प्रदेशके प्रदेश प्रमुख देवराज जोशी उद्घाटन करलै । उद्घाटनके क्रममे उहाँ अपने मौलिक संस्कृतिहे भुले नइहुइना बटैलै । बाजुरेली सेवा समाज धनगढीसे आयोजना करल भुवा पर्व तथा देउडा कार्यक्रमके उद्घाटन करटी उहाँ यैसिन बटाइल हुइट । ‘हम्रे जटराफे विकासके क्रममे आघे बढलेसे हम्रे संस्कृतिहे भुले नइपरल, उहाँ कहलै, ‘कौनोफे देश समाज ओ कौनो फे मानव समाजके निम्ति संस्कृतिके महत्वपूर्ण भूमिका रहठ ।’

सुदूर पहाडी जिल्लामे भुवा पर्वके अलगे पहिचान रहल बटैटी उहाँ धनगढीमेफे भुवा पर्वहे स्थान डेहलमे बाजुरेली सेवा समाजहे धन्यावाद व्यक्त करलै । सुदूरपश्चिमके बाजुरा, अछाम, बझाङ लगायतके जिल्लामे भव्य रूपमे मनैना भूवा पर्व हरेक वर्ष पुस औँसीसे सुरु हुइठ । तरवार, ढाल नचैटी दमाहाके तालमे देउडा ओ मागल गीतके साथ खेल्ना भुवा पर्वसे धनगढीमे अलग पहिचान बनासेकल बा । द्वापर युगमे पाँच पाण्डवसे कौरवउप्पर विजयी हासिल करलपाछे निकारल विजयी जुलुसमे तरवार ओ ढाल नचैटी खुशीयाली मनाइल ओ ओकर सम्झनामे भुवा खेल खेल्न चलन रहल बा ।

दमाहाके तालसंगे एक हातमे तरवार ओ दुसर हातमे ढाल नइचलैना दृश्य सहितके भुवा नाचके प्रदर्शन आजकाल्ह सुदूरपश्चिमके गाउँबेशीमे हुइटी बा । यी भुवा कैको, पाँच पौण्डु देउको, का बाट उब्जी, मन्त लोक उब्जी, त्याँ बाट इन्द्रका बार, इन्द्रका बार भुवा खेलायो .‘.अइसिन लय ओ भाकासहित भुवा पर्व खेलजाइठ ।

हाल लोपोन्मुख अवस्थामे रहल भुवा पर्वके ऐतिहासिक, सांस्कृतिक महत्व रहल बा । बाजुुरेली सेवा समाजके अध्यक्ष चेतन थापा कहठै, ‘भुवा प्राचीन संस्कृति हो । प्राचीनकालीन युद्धके भाका हो । कौशलके प्रदर्शनी हो । जेकर अपने मौलिक विशेषता बा, हमार पहिचान हो ।’ पुसे औंसीके अघिल्का मध्यरातसे शुरू हुइना भुवा महाभारतके पाण्डप ओ कौरवबीचके युद्धसे यी पर्व आरम्भ हुइल जनविश्वास रहटी आइल बा ।

उहे लडाइँके सम्झना तथा पाण्डपके जीतके खुशीयालीमे पर्व मनाई लागल अधिकारी बटैठै । भुवा खेलके पहिरनफे विशेष प्रकारके रहठ । भुवा खेल्न पुरुष उज्जर भोटोसहित जामा, पाछे कुमसे गोरसम पुग्ना करके पिठ्युमे एक ठो उज्जर चदरी जैसिन पहिरे परठ । मुरीमे पगरी बाँधे परठ ।

बाजागाजाके साथ दमाहासेफे अनेक धुन बजैठै, बाजागाजा लस्कर हुइटी औंसी ओ प्रतिपदाके दिन चम्काइल ढाल तरवार बाजागाजा भुवाके लयमे चम्कन शुरू हुइठ । बायाँ हातमे ढाल, दायाँ हातमे तरवार लेके बाजाके तालसंगे गुरुके निर्देशनअनुसार सुस्तगतिसे भुवा खेल खेल्न करजाइठ । खेलमे २० ठो चाली ओ ६३ कवच रहठ ।

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