थारु समुदायमे घोर्वा फेर्ना चलन

पहुरा समाचारदाता
धनगढी, १२ कुँवार । थारु समुदायमे डसँैमे आपन देउता अर्थात् घोर्वा ओ माटिक डिया फेर्ना चलन रहल बा । अन्य समयमे नैहोके डसँैमे देउता फेर्ना हुइल ओरसे अब्बे घोर्वा (माटीके घोर्वा), डिया बनुइयनके व्यवसाय मजा चलल् बा ।
अन्य समयमे खोजके बिरलै खरिद करे पैना घोर्वाके डसँै लागलपाछे सहज रुपमे खरिद करे पाजाइठ् । माटीके भाडा बनैना पेशाकर्मी अब्बे सक्कु खाले देउताके मुखाकृति बनाके घोर्वाके बिक्री करे लागल थारु समुदायके अगुवाहुक्रे बटैले बटै ।
कैलारी गाउँपालिका–७, भुँइयाफाँटाके बाँधुराम कुमाले विशेषतः डसैं डेवारी लच्क्याइलसँगे थारु सुमदायके देउता अंकित घोर्वाके बिक्री सुरु हुइल बटैलै ।
अन्य समयमे न्यून रुपमे माटिके देउता घोर्वाके बिक्री हुइलेसे फेन डसँैमे यकर मजा बिक्री हुइना करठ्,’ उहाँ कहलै, ‘डसंै सुरु हुइलसँगे दैनिकरुपमे घोर्वा लगायत माटीक डिया बिक्री हुइटी रहल बा । इ बेला घर लिपपोत कैके घरमे घोर्वा सहित माटिक डिया फेर्ना करजाइठ् ।’
माटिक काम करुइया जाति घोर्वा बनैना करठै । प्रायः डसँैमे थारु समुदायमे घोर्वा फेर्ना प्रचलन रहल ओरसे अन्य समयसे घोर्वाके बिक्री मजा हुइना करल उहाँ बटैलै । मौसमीरुपमे किल बिक्री हुइना हुइल ओरसे फेन प्रति घोर्वा रु पाँच सयसे रु एक हजारसममे बिक्री हुइठै ।
उहाँ आघे कहलै, ‘मेर मेरके देउताके चित्र बनैले बाटी, इ बेला मजा बिक्री हुइटी रहल बावै,’ उहाँ कहलै, ‘थारु सुमदायके जातअनुसार घोर्वा देउता फरकफरक रुप वा स्वरुपसे निर्मित कैना करल बाटै । उहे अनुसार मेल खैना घोर्वा किल फेर्ना करजाइठ् ।’
बरस दिनभरमे कुछ टुटफुट हुइल वा कौनो खोट डेखलमे घोर्वा फेर्ना करल उहे गाउँक सोमै दहित बटैलै ।
‘माटीके भाडा घोर्वा आकारमे टमान देउताके चित्र अंकित घोर्वा लेके देउता कोठा अथवा मर्वामे सजैना करजाइठ्,’ उहाँ कलै, ‘घोर्वा माटीके बनैना हुइल ओरसे बरस दिनभरमे कुछ टुटफुट हुइल वा कौनो खोट डेखलमे डसँैमे किल फेर्ना चलन बा । लावा देउता बनैना बेला किल फेर्ना करजाइठ् । इ बेर वा बीच बीचमे फेर्ना चलन नैहो ।’
थारु समुदायके मुल पदवीअनुसार घोर्वाहे कुल पुरोहित देउताके रुपमे चिन्हजाइठ् । पाँच इन्द्रिय रहल देउताके रुपमे रहल घरके सदस्यके संरक्षण तथा दुःख बिरामीसे छुटकारा डेहुवाइना देउताके रुपमे घोर्वाहे मन्ना ओ पुज्ना करजाइठ् । लावा देउता किने अउइया ग्राहकके पुरान देउताके स्वरुपसँग मेल खैना मेरके किल बिक्री कैना करल उहाँ बटैलै । घोर्वा फेन जात विशेष आधारमे टमान मेरके रहठै ।
डसैँमे विशेषरुपमे मैया देउताके पुजासँगे सौरा, खेखरी ओ जात विशेषके आधारमे टमान देउताके पूजा कैना चलन रहल बा । थारु समुदायके अगुवा समिर चौधरी पर्व मनैना, पूजाआजा कैना आआपन तरिका रहल ओरसे थारु समुदायमे डशैमे घोर्वा फेर्ना, खानपान ओ रमाइलो कैना चलन रहल बटैठै ।
‘डसँैमे थारु समुदायमे देउताके भाडा फेर्ना, गाउँगाउँमे नाचगान कैना, समुदायमे रहल नाचगान ओ पहिरन संरक्षण कैना करजाइठ्,’ उहाँ कहलै, ‘सपरिवार, छिमेकी तथा नाटपाट जम्मा होके रमाइलो कैके नाचगान कैटी डशै मनैना तरिका थारु समुदायके पहचिान जोगैले बा ।’
डसैँ सुरु हुइलपाछे थारु गाउँमे सखिया, मुग्रौहा, झुम्रालगायत नाचगान कैना करजाइठ् । ‘अपनही मन्द्रा बजाके, पुरुष धोती तथा भेगुवा लगैना, महिला अक्के खालके लेहँगा ओ चोलीमे सजके नाचगान कैना चलनसे रमाइलो हुइठ्,’ उहाँ थप्लै, ‘थारु समुदायमे टरटिहुवार मनाइबर विशेष तवरसे मनाजाइठ् ।
डसंैके समयमे थारु समुदायके गाउँगाउँमे रात्रिकालीन नाटक प्रदर्शन, नाचगान जैसिन कार्य हुइठ् । इहीसे संस्कृति संरक्षण, कला ओ संस्कृति युवा पुस्ताहे हस्तान्तरणमे सहयोग पुगाइठ् ।’
