गुरिया, गुडिया (गुह्य) नाग पञ्चमी
‘गुह्य’ शब्द संस्कृत भाषाके शब्द हो । यकर अर्थ नेपालीमे गोपिनियता, आन्तरिक या भित्रि भाग कना अर्थ बुझजाइठ । थारु संस्कारमे भाषाके अपभ्रम्स हुके गुह्य शब्दहे गुरिया कना प्रचलन डेखाइठ । (गुह्य) श्रीमद्देवि भागवत महापुराण आधारमे १००८ गायत्री मध्यसे एक आदि शक्तिदेविके रुपमे परिचित स्पष्ट व्याख्या करल बा ।
थारु भाषामे संस्कृत शब्दहे बोल्ना जस्ते तो, ते, रि, नी निपात शब्द बोलना करजाइठ । बज्या शब्द फेन संस्कृत सब्द हो, उहेसे वाणिज्य शब्द अइल अर्थात् व्यापारी या व्यापार बुझजाइठ मने हाल आके बज्या शब्दहे भारतीय मुलके मनैनहे कहिजाइठ ।
वास्तवमे थारु पुर्वजहुक्रे संस्कृत भाषा प्रयोगमे नानल संस्कार हालसम जीवित बा । गुरिया (गुह्य) कना शब्द जा रलेसे फेन नाग पञ्चमीसे पुराण, शास्त्रके आधारमे बिषालु जीव थारु भाषामे किरा पृथ्वी या कौनो वस्तुमे भित्री भाग ओर बसोबस खोज्ना बुझजाइठ ओ धार्मिक मान्नेता फेन बा । टबेमारे उ दिन थारु समुदाय एक टिहुवार (उत्सव)के रुपमे मनैठै ।
मानव जीवनहे दुःख कष्ट डेहुइयन आजके दिनसे भित्री भाग या गोप्य ठाँउ खोज्ही कना मान्यता बा । यिहे मान्यताके साथ किराके पुतला बनाके लवण्डी या छाइहुक्रे बनाइल किरा (गुरहीक् पुतला)हे लवण्डा या छावन् उ पुतलाहे कुशके सोंटा (चाबुक)से डटके पिट्के आजसे भागो कहिके कना मान्यता बा । उ सब काम गाउँक् बाहेर लैजाके कैजाइठ । यी करनाके अर्थ मानव बस्ती भित्तर रहल किरा÷काँटी ओ मकौरा भगैना मान्यता बा । सक्कु पक्रिया पूरा करसेकलपाछे भगैना ओ रखेटके छावनहे खुसियालीमे मकै, केराउ, चानालगायतके भुजा, राटी, फुलौरी खाके गुरिया समापन करना प्रचलन बा ।
पहिलहीसे चल्टी आइल टिहुवार वास्तवमे हिन्दू परम्परा अनुसार टमान समुदाय हालसम फेन अइसिन प्रकृतिक पूजार्चना नैकरठै । एक अलग पहिचान बोकल अपन संस्कृति रहल प्रचलन सदाके लाग जिवन्त रख्न हमार सबके कर्तव्य हो ।
जानकी–३, कैलाली