थारु राष्ट्रिय दैनिक
भाषा, संस्कृति ओ समाचारमूलक पत्रिका
[ थारु सम्बत ०१ अगहन २६४९, अत्वार ]
[ वि.सं ३० कार्तिक २०८२, आईतवार ]
[ 16 Nov 2025, Sunday ]

साहित्य

हमे छक परछिन

हमे छक परछिन

क्रन्तिके खातिर उठल करमठ हाथसवकुरसीके खातिर सदैये झुकल देखछिन ।जनपछिय कहलावे वला नेतासवपैसाके लालचमे बिकल देखछिन, तहमे छक परछिन ।माटिके अधिकार आने साकवु कहेवलासवन्यायके खातिर सडकमे उतरल देखछिन ।क्रान्ति देखिके डरावेवला आदमीसियाकेसहिदके
पैरक पठ्री

पैरक पठ्री

आज सुनपुर गाँउम गाँउक सक्कु किसनोन डङ्ग्वान घरक बेगारी धान काट खेट्वा ओहर लग्लिन् । हरेक वरष अगहनम डङ्ग्वान धान कट्ना बेगारी लेठ । डङ्ग्वा सुनपुर गाउँक देशबन्ध्या गुरुवा हो । ओह गुरुवा हुइलक कारण गाउँक किसनोन एक दिनिक निशुल्क बेगारी
थारु साहित्यके उपन्यास ओ उपन्यासकार

थारु साहित्यके उपन्यास ओ उपन्यासकार

उपन्यासके ओंरि थारु साहित्यमे आख्यानके ओंरि रामप्रसाद राय थारुके ‘थरुहट के बउवा और बहुरिया’ पोस्टा कैल (सर्वहारी, २३ः २०७०) । मने रामप्रसाद रायके थरुहट के बउवा और बहुरिया (२०१९) हे महेश चौधरी गीति नाटक कहले बटाँ । डा.गणेश खरालके अन्सार
सनेश

सनेश

बिहन्नी भुटियाहे हुँकान टोलके काकी ससुइया फौगनी अंगनामे आके कहलीन, ‘मोर पटोहिया सोम्मार लैहर जाइटा । टै फेन पठाइ जा । उहे कहे आइल रहुँ ।’ अत्रा कहिके पितिया ससुइया (काकी ससुइया) चलगिली । भोजके बाद पहिलचो दुलहीहे पठाइ जउइया मनै सनेशके
कुछ कर निस्याकठु

कुछ कर निस्याकठु

यी जिन्गीम कुछ करु कठु कर निस्याकठुखाली खाली पन्नाम इतिहासके गाथा भर निस्याकठु । सक्कु ओहरसे सौस्याटल बाटु समस्याले घेरल बाटुटमान संघरेनके बाट ओहफे आघ बह्र निस्याकठु । देश दुवार कुड्कति बाटु गोचालिनसे जुट्टीफे बाटुहाठ पकर्ख टन्बी
मैयक प्रस्ताव

मैयक प्रस्ताव

२०५६ साल । कलेजक पहिला दिन । पहिला दिन जो म्वार लजर एकठो लहरैटि रलक सुग्घर फुलम परल् । म्वार ग्वारा उहँर्य बहर्टि गैल् । मै कहोंर जाइटु कना महि स्वयं पटा निरह । माहोल चारुओंर मगमगाइटह । मै भावना ओ कल्पनम उरटहँु । मानौ मै
नाटक करना तालिम सुरु

नाटक करना तालिम सुरु

पहुरा समाचारदाताधनगढी, २२ अगहन । नेपाल संगीत तथा नाट्य प्रज्ञा-प्रतिष्ठान काठमाडौंके आयोजनामे सोम्मारसे धनगढीमे ७ दिने नाटक करना आधारभूत तालिम सुरु हुइल बा । शिखर आर्टस् प्रालि धनगढीके संयोजनमे हुइटी रहल तालिममे १५ जाने सहभागि
बुधरामके ढान डौंनि

बुधरामके ढान डौंनि

यि अघनके मैन्हा । गाउँभर ढान डवाँइ मचल बा । बरस भरिक कमाहि घर भिटरेइना ढ्याउन्नमे गाँउक सबजने लागल बटाँ । बुधराम फेन ढान डवाइँमे लागल बा । जम्मा डुइएठो गोरुन्ले बुधरामके घाना अक्को नै निख्रठुइस । उ घाना सिमोट्ठि बर्बराइठ, ‘खै य
रौना

रौना

बेफ्ना बुबाह छुट्यईना मुस्किल परल । अन्सारसे हुँकार गिज्रार दाँत डेक्क बोल्कारडर्नु । उ फाँटल हेल्का टङग्र टहँै । चिप्रार आँख, भाँउ उप्पर सर्कैटी, उ फे म्वर बोलि बिचार डर्ल काहुँ । “अ… ऽऽ रे फग्वा नाटि हुइटो ?” इन्ड्यासे आईल बाट
संस्कृतिके बिलाप

संस्कृतिके बिलाप

एक समय अइसा रहे, लक्ष्मीराम बहुट सुखी रहैं । घरके एकलौटा छावा, खैनापिना कौनो समस्या नाई । बपुवा काशीराम बर्का मेहनती, मुर्गीबोल्टैसे काममे डटपर्ना । हुकहिन देखके गाउँक मनै अचम्म परैंह् । लक्ष्मीराम फे करिब करिब अपने बाबकहस्