डुइ बरस आग माघ ठे डुइठो जार खाइल नाटक “करोट” । निमाङ थारु ओ खस नेपाली भाषम मञ्चन हुइल नाटक करोट २०७५ साल पुस ६ गतेसे २१ गतेसम् सर्वनाम थिएटर, काठमाडौँ ओ माघ १६ गतेसे २२ गतेसम् घोराही ओ तुलसीपुरम प्रदर्शन हुइल । काठमाडौँ केन्द्रित
पृष्ठभूमि ६० के दशक पाछे चर्चाके रुपमे अइटी रहल शब्द हो, जय गुर्बाबा । हरेक यूवा वर्गमे खास करके यूवा साहित्यकार तथा लेखक वर्गमे यी शब्द एकदम मुखारित हुइल बा । किहिनहे अभिवादन करे परलमे जय गुर्बाबा कना करजाइठ । ६० के दशक से आघे थारू
फागुन आइठ टो भोज सम्झबो । भोज कहटी कि लगनके बाट उठे लागठ । कोइ कहे लागठ, असौं लगन नाइ हो । कोइ कहे लागठ, लगन बा मने बरा कम डिन बा । फागुनके लग्गे बस अस्टे अस्टे बाट उठा करठ । पहिलेक चलन फरक रहे । फागुन अइटी कि थारु बस्ती चैनार । न लगन न सगन ।
अधिकांश पर्सागढीके बारे जन्ले हुइबी । मने नेपालके भूभाग ब्रिटिस सरकारसे कब्जा करना क्रममे नेपाली अंग्रेजहे पराजय करना टमान गढीमध्येके एक हो पर्सागढी । यिहिनहे और विस्तृतरुपमे कलेसे वि.सं. १८७१ मे नेपाल सरकार ओ भारतके तत्कालीन
ओंरवा लेहेबेर नेपाल भर थारु पत्रकार कठेक बटाँ ? महि लागठ, यकर ‘लेटेस्ट’ यकिन तथ्यांक थारु पत्रकार संघ नेपालके ठेन नै हुइस । थारु पत्रकारन्के यकिन संख्या ओ कौन थारु पत्रकार खास कैके अपन थारु मातृभासम पत्रकारिता करटि बटा ? थारु पत्रकार
आजसे १७ वर्ष पहिल रेडियो कार्यक्रमक लाग प्रश्न पुछबेर महि थाहा नि रह कि यि कार्यक्रम रेडियो प्याकेजि· हो कैक । मनै पहर्क जन्ठ कि ट पर्क कठ । रेडियो पत्रकारिता ना मै पह्रल रनहु ना मै बनैना ठाउँ डेख्ल रनहुँ । उ समयम रेडियो नेपाल काठमाडौं