थारु राष्ट्रिय दैनिक
भाषा, संस्कृति ओ समाचारमूलक पत्रिका
[ थारु सम्बत २३ बैशाख २६४८, अत्वार ]
[ वि.सं २३ बैशाख २०८१, आईतवार ]
[ 05 May 2024, Sunday ]

विचार

मघौटा गिटसंगिटम समयचेट

मघौटा गिटसंगिटम समयचेट

संगिट सौन्डर्यसास्त्र एकठो डर्सनसास्त्र जो जुन संगिटम पाजैना कला, सुन्डरटा ओ स्वाडक बारेम वर्नन कर्ठा । पुरान जवानासे आझसम्म गिटसंगिट मनैन्हक भावना, बौड्ढिकटा, मनोविग्यान जसिन पच्छेह बोल्टि आइल बा । सभ्यटाक विकास सँगसँग आपन भावना
समानता, शिक्षा ओ रोटी

समानता, शिक्षा ओ रोटी

मनै मुअक ते जर्मलक नै हो, बेन जियक ते जर्मलक हो । प्याट केल पालक ते जिना त संकिर्ण व घिनलक्टीक विचार हो । ऐसिन घिन लक्टीक विचारह ठाउँ देलसे मनै उन्नतिम नाही वेन बजहन्ने परजाइ । जिना त एकथो कुकुर फे जियल रहथ । घिन लक्टीकसे घिन लक्टीक
नेपालके निजामति प्रशासन ओ थारु कर्मचारी

नेपालके निजामति प्रशासन ओ थारु कर्मचारी

वि.सं. १८२५ मे जब राजा पृथ्वीनारायण शाह काठमाडौँ उपट्यका जिटके नेपाल राज्यक स्ठापना कैलाँ, टबसे राज्य संचालनमे निजामति प्र्रशासनके भुमिका रलेसे फेन खास कैके वि.सं. २००७ सालमे जब राणान्के जहाँनिया पारिवारिक शासन ओराइल टब राज्य संचालनमे

थारु हो, पाछे हट

रामसागर चौधरी थारु समुदायके बारेमे कुछ खिट्कोरु कि कहिके लेख लिखल हो । थारु वंश कोचिला हो । कुल थारु ओ थाक खाँ हो कलेसे उप थाकमे कुहे खाँ, फकिर खाँ, करणीमाझी खाँ हो । थारु समुदाय अपनहे थारु कुलके कठैं । थारुहे जात टे शासकहुक्रे ठोपर
घरक् टिनाः डाइक् मैंया

घरक् टिनाः डाइक् मैंया

साँझ बेहानके कचकचघरक् मेरमेरिक झन्झटसेछुट्टि पाइक लगमन भरठ उडानघरसे जट्रा डुरपुग्ठि हमे्रओट्रे जोर सम्झनामे आइठ घर । भारतके कवि आत्मा रंजनके ‘घरसे डुर’ सिर्सक कविता हो इ । निस्चय फेन घरेसे जट्रा डुर हुइबो, ओटरे जोरसे घरक सम्झना
संविधान, आइएलओ १६९ ओ आदिवासीनके अधिकार

संविधान, आइएलओ १६९ ओ आदिवासीनके अधिकार

क) परिचय अन्तर्राष्ट्रिय श्रम संगठनक् महासन्धि संख्या १६९ अन्तरगत आदिवासी तथा जनजाति सम्बन्धी महासन्धि, १९८९ म पारित हुइलक हो । अन्तर्राष्ट्रिय श्रम संगठनक् महासम्मेलनसे, अन्तर्राष्ट्रिय श्रम कार्यालयक् संचालक निकायमसे जेनेभम
माघ ओ मोटरसाइकल

माघ ओ मोटरसाइकल

अब्बे विश्व कोरोना कहरसे गिलगिल ओ पिलपिल हुइल बा । अइसिन महामारी अवस्थामे माघ होए या औरे टर/टिहुवार मजासे मनाइ नैसेक्जाइठ । टब फेन इ बरसके औरे टिहुवार अट्वारी, अस्टिम्की, डस्या, डियाडेवारीसे माघ मजैसे मनैली । ढेर दिन हुइ गिल कोरानाके,
रुपन्देहीम थारु लोकसाहित्यके अवस्था

रुपन्देहीम थारु लोकसाहित्यके अवस्था

परिचय थारु लोकसाहित्य कलक थारु जाति जुगजुगसे एक पुस्तासे डोसर पुस्तामे मौखिक रूपम लोकगीत, लोकगाथा, लोककथा, लोककहकुट, लोकटुक्का, लोकबुझौलिया आदिक माध्यमसे लोकव्यवहार हस्तान्तरण कर्टी आ रख्लक लौकिक साहित्य वा परम्पराहे बुझाइठ् ।
भलमन्सा प्रथा बिगत, वर्तमान ओ अइना डगर

भलमन्सा प्रथा बिगत, वर्तमान ओ अइना डगर

भलमन्सा भलमानस, सक्कुनके भला चहना मनैयाँ, सक्कुनके भला कर्ना मनैयाँ जो भलमन्सा हो । जौन भला मनैयाँ गाउँक नेतृत्व कर्ना, धर्म साँस्कृति जोगैना, सामाजिक सदभाव बह्रैटी न्याय निसाफ कर्ना, विकास निर्माण लगाएतक काम करठ । आपन योजना
लिक्यासे बाहेर भ्वजहा रिट

लिक्यासे बाहेर भ्वजहा रिट

“…बडानी खाएके जाएके बा, अप्नहु चलु” उप्परिक अँख्रा पुर्बैह्या गोचा फोनसे महिन निउट टहै । बडानी कलक, हमार पच्छिँउह्वा थारुम पक्कापोर्हि खैना, कहुँ ठकौनी खैना फे कठ । माघ, फागुन छ्याँकभर थारु गाउँम भ्वजक ढुमढर्का, सामाजामक डटल