थारु राष्ट्रिय दैनिक
भाषा, संस्कृति ओ समाचारमूलक पत्रिका
[ थारु सम्बत १४ बैशाख २६४९, अत्वार ]
[ वि.सं १४ बैशाख २०८२, आईतवार ]
[ 27 Apr 2025, Sunday ]

साहित्य

भुँईचेप्ठा ओ निब्बर डुब्बर मनैन्क बट्कोहि

भुँईचेप्ठा ओ निब्बर डुब्बर मनैन्क बट्कोहि

बट्कोहि लिखबेर म्वार खिस्सम पाठ खेलुइया निब्बर डुब्बर भुँईचेप्ठा मनैन समझ्क ढयार आँस चुहैनु । ओइनक दुख बट्ठा सह नै सेक्क डिया बुटाक रुइल बाटु । आज फे म्वार बट्कोहिम पाठ खेलुइयन झलझल्यह्यठ डेखहस लागट । ढ्यार जहन मै न्याय डिहाइ खोज्ल
साहित्यके ‘डेसाहुर’मे शेखर

साहित्यके ‘डेसाहुर’मे शेखर

शेखर भाइक ‘गयर्वा बुडु’ पहिल खिस्सा संग्रह पह्रके लागल रहे, भाइक मरमसाला ओरा गैल हुइहिन । आब हुँकार लेखन अट्रे हुइहिन । काजेकि पहिल खिस्सा संग्रह निकारके उ बिर्कुल सम्पर्कबिहिन हो गैल रहिट । मने सोचलसे ठिक उल्टा हुइल । थारु
हनुमानके कहानी

हनुमानके कहानी

एक दिन हनुमान गोरपासु करे सीताजीके दरबार ओर गैलैं । ओहेबेर सीता अपन माँगेम् सेंडुर डारे भिरल रहिंट । हनुमानहे बरा अचम्म लग्लिन ओ पुछलैं । माताजी इ लाल लाल का लगाइटी अपने ? इ लगैलेसे का हुइठ् ? सीताजी कलैं–इ सेंडुर हो । इ लगैबो टे स्वामीके
मोर डाइ

मोर डाइ

आपन खुन पस्नासे महिन सिंच्लो डाइनौ नौ महिना आपन कोखमे पल्लो डाइआपन अङ्ग अङ्ग टुर्केरकटके आँस रोकेभिष्म पिटाके जसिन कुरुक्षेत्रमेटिरके बिस्टरामे सुटलबट्ठा महसुस कर्टियि प्राकृतिक डुनियाँ डेखैलो डाइआपन खुन पस्नासे महिन सिंच्लो
का पठ चुकि खाइटो ?

का पठ चुकि खाइटो ?

मै टुहिन और बाट नि पुछमपुछम ट एक्कठो बाटटुँ काजे अबिर लगाइटो ?का पठ चुकि खाइटो ??आस किल्वाहि छिन्लि कैखटुहिन पटा बाकाल जाक टउ किल्वाहि टटुहाँर खुसि उप्पर लागिप्रतिगमन हटलअग्रगमन जिटल कठोखै ट टीकापुर जिटल ?खै ट थारु हुँक्र जिट्ल ?ट
अबहट्टाके बाट

अबहट्टाके बाट

शब्द–शब्दसे लिख रहलची थारु साहित्यके नाम रेचौअनी अठअन्नी नै माँगैची हम कोनो दाम रे ।।नजर गैहरयाके देख आँईखके पलक उघाईरके देखमाईटमे एक–एक अवाज तोहर अबहट्टाके बाट देख ।। बटोहियाके बाट लिहारैत अबहट्टाके निसान रेथारुके देश देखलक
नाटक करोटक साक्षिपात्र

नाटक करोटक साक्षिपात्र

डुइ बरस आग माघ ठे डुइठो जार खाइल नाटक “करोट” । निमाङ थारु ओ खस नेपाली भाषम मञ्चन हुइल नाटक करोट २०७५ साल पुस ६ गतेसे २१ गतेसम् सर्वनाम थिएटर, काठमाडौँ ओ माघ १६ गतेसे २२ गतेसम् घोराही ओ तुलसीपुरम प्रदर्शन हुइल । काठमाडौँ केन्द्रित
बाध्यताके सिकार

बाध्यताके सिकार

पात्र हुक्र : डिलसिंह : जिम्डर्वा बिस्न्या : कमैया( डिलसिंहके पुरान कमैया ) चुल्ही : बिस्नेक जन्नी भुन्टी : विस्नेक छाई रामु : बिस्नेक छावा स्थान : बिस्नेक गाउँ ओ चौभानके आसपास दृश्य –१ (बिस्नेक अङ्गनाम बैठ्ख मोछ पक्ला जिम्डरवा डिलसिंह
भस्कुरान भ्वाज

भस्कुरान भ्वाज

फग्नक महिना रुख्वा बरिख्वाम लौव लौझा डँर्या पट्टेम लट्पटाइल बौंरा सुगुना ढुल्ला खेल्टि फुलवारसे मगमग सुवास लेक सिट्टर बयाल घर घर अइलक सन्डेसमुलक गिटले गाउँ चैनार पर्टि रह । माघ–डेवानिम स्वाचल सोचह आघ बह्रैना समय सेम्रक भुवाअस
मुक्तक

मुक्तक

कुछ लिखु कैके कलम उठैठु कलम रूक जाइट् ।मनके पोक्री डिलसे खोलु कठु मनमे नुक जाइट् ।। बहुट बा, इच्छा चाहना यी जिन्गीम् कुछ करना मनमै सपना डेख्टी रहि जिठु बहुट कुछ झुक जाइट् ।। टीकापुर, कैलाली